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क्या क्या नहीं करती थी मां???? विचार सुता स्नेह प्रेमचंद द्वारा

दीवाली पर ईंटों के फर्श को बोरी से रगड़ कर लाल लाल बनाती माँ,

बर्तन के ढेर को माँजती,फिर भी कभी न खिज्जती माँ।

ढेर कपड़ों का धोती,खूब चमकाती, कर्म को कैसे उत्सव बनाती माँ।

चादर लाती,सूट सिलाती,स्टाइलिश स्वेटर बनाती माँ।

दीवाली पर भैंसों की विविध रंगों की गलपट्टी बनाती मां

कर्म की कावड़ में जल भर मेहनत का ,सबको आकंठ तृप्त कराती माँ।

स्वाद सा भोजन,कभी साग सरसों का,कभी बाजरे की खिचड़ी,कभी लहुसन की चटनी बनाती माँ।

इंतज़ार सा करती रहती,देख सदा मुस्काती माँ।

कभी पापा को कभी भैंसों को खोजती मां

बिन किसी खास सहयोग के मनोयोग से सच्ची कर्मयोगी मां

हर रिश्ते में बना रहे तालमेल,खामोशी से विवादों पर समझौतों का तिलक लगाती माँ

*हे री कोय राम मिले घनश्याम*
 सा मधुर गीत बड़ी तन्मयता से गाती माँ।

बड़ी बीमारी से ग्रस्त होते हुए भी,कभी भी उफ्फ नही करती माँ।।

बारिश के दिनों में खाट लगा कर चूल्हे पर रोटी बनाती माँ।

भैंसों के काम सतत करती,गेहूं तोलती कर्मठ मां।

सिर पर रख कर भारी चारा,कितनी दूर से आती माँ।

होली पूजती,दीवाली बनाती,तीज पे पापड़ बनाती माँ।

जीवन के हर मोड़ पर साथ पिता का देती माँ।

ब्याह शादी बड़ी रौनक से करती,बच्चों के जन्मोत्सव पर गूंद घालती माँ।

*कभी कभी मेरे दिल मे ख्याल आता है* इस गाने को बड़े चाव से सुनती माँ।

घर के गेट के आगे डाल के कुर्सी,सहेलियों से बतलाती माँ।

ज़िन्दगी की तपिश में ठंडी छैया बनती माँ। 

भाई के पटियाला जाने पर बांध सिर पर कपड़ा खाट पकड़ती मां।

प्रेम अर्धांगिनी प्रेम भरी थी,सच मे कितनी अच्छी माँ

इतनी मसरूफियत के बाद भी सिनेमा हाल में पिक्चर देखने जाती मां

11 स्वर और 33 व्यंजनों के बस की बात नहीं हो मां का सही से की पाएं बखान

बहुत छोटा शब्द है मां के लिए महान

*अभिव्यक्ति नहीं अनुभूति थी मां*

*उच्चारण नहीं आचरण थी मां*

*संकल्प से सिद्धि तक का सफर थी मां*

*प्रतिबद्धता का पर्याय थी मां*

*जीवन में सबसे अच्छी राय थी मां*

*विषम परिस्थितियों के बावजूद भी सफलता का डंका बजाती मां*

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