मुस्कान के पीछे छिपी जो उदासी देख ले,
लब बेशक कुछ ना बोलें,पर जो नयनों को पढ़ ले,
शक्ल देख जो पल भर में हरारत पहचान ले,
अक्सर जो गणित में कमज़ोर हो,दो रोटी मांगो ,चार देती हो
हमारी हजार कमियों के बाद भी हो ममता लुटाती हो,
जीवन में जाने कितने ही समझौतों को बिन किसी गिले शिकवे करती हो,
हमारे हर कब,क्यों,कैसे,कितने का तत्क्षण उत्तर बन जाती हो
हर संज्ञा,सर्वनाम,विशेषण का बोध करवाती हो
*वो मां के सिवाय कौन हो सकता है*
और परिचय क्या दूं मां तेरा????
स्नेह प्रेमचंद
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