फिर हर शब्दावली अर्थ हीन हो जाती है
फिर मौन मुखर हो जाता है
ये दिल का दिल से नाता है
मुझे तो प्रेम मापने का ये एक ही पैमाना समझ में आता है
होता है जिससे प्रेम सच्चा फिर सिर्फ नजर वो आता है
अक्सर देखा है जीवन में शब्दों का स्थान भाव जीत ले जाता है
हर भाव के लिए शब्दावली बनी ही नहीं,वरना जो लेखक कहना चाहता है वो श्रोता तक पहुंच नहीं पाता है।।
स्नेह प्रेमचंद
बहुत ही सुन्दर कविता प्रेम की परिभाषा को पूर्ण रूप से परिभाषित करती है आपकी ये कृति superb ☺️
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