Skip to main content

महिमा मंडित भले ही ना करो नारी को(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

महिमा मंडित भले ही ना करो नारी को,
वो जैसी है उसे वैसी ही रहने दो

जो भी बात है उसके दिल में बंधु
वो बात तो खुल कर कहने दो
वो बात तो खुल कर कहने दो

ना सिद्ध करो उसे पुरुष से बेहतर
उसे अपना जीवन जीने दो
तुलना के भंवर में ना उलझाओ उसे
उसे सहज भाव से रहने दो

महिमा मंडित भले ही ना करो नारी को,वो जैसी है उसे वैसी रहने दो

मत बांध बनाओ उसकी इच्छाओं के आगे,
उसे नदिया की धारा सा बहने दो
स्वयं को सिद्ध ना करना पड़े उसे बार बार जिंदगी के हर मोड़ पर,
उसे स्वयं सिद्ध ही होने दो
उसे स्वयं सिद्ध ही होने दो

वो ऐसी है वो वैसी है छोड़ो इसे
जैसी भी है वैसी ही उसे रहने दो
इतनी तो उसे दो आजादी
वो सोचे,समझे,जाने दुनिया को अपने ही नजरिए से
अंतर्मन के गलियारों में उसे बिन किसी बंधन में बांधे रहने दो

बेटी,बहन,पत्नी,मां के अलावा वो एक व्यक्तित्व भी है उसके अस्तित्व को अनछुआ ही रहने दो

उसकी इच्छा,उसके शौक,उसकी प्राथमिकताओं को प्राथमिक रहने दो
अच्छी बुरी के मापदंड जो बना रखे हैं सबने मिल कर,
उन मापदंडों को बिन विश्लेषण के रहने दो
वो सोन चिरैया है अपने बाबुल के चमन की,
उसे पंख फैला कर उड़ने दो
उसे पंख फैला कर उड़ने दो

कुछ ना कहना,बस चुप रहना
बहुत हुआ 
अब खामोशी का कोलाहल होने दो
पुरुष प्रधान से इस समाज में नारी को नारी होने दो
महिमा मंडित भले ही ना करो नारी को,
वो जैसी है उसे वैसी रहने दो
वो जैसी है उसे वैसी रहने दो

Comments

Popular posts from this blog

वही मित्र है((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कह सकें हम जिनसे बातें दिल की, वही मित्र है। जो हमारे गुण और अवगुण दोनों से ही परिचित होते हैं, वही मित्र हैं। जहां औपचारिकता की कोई जरूरत नहीं होती,वहां मित्र हैं।। जाति, धर्म, रंगभेद, प्रांत, शहर,देश,आयु,हर सरहद से जो पार खड़े हैं वही मित्र हैं।। *कुछ कर दरगुजर कुछ कर दरकिनार* यही होता है सच्ची मित्रता का आधार।। मान है मित्रता,और है मनुहार। स्नेह है मित्रता,और है सच्चा दुलार। नाता नहीं बेशक ये खून का, पर है मित्रता अपनेपन का सार।। छोटी छोटी बातों का मित्र कभी बुरा नहीं मानते। क्योंकि कैसा है मित्र उनका, ये बखूबी हैं जानते।। मित्रता जरूरी नहीं एक जैसे व्यक्तित्व के लोगों में ही हो, कान्हा और सुदामा की मित्रता इसका सटीक उदाहरण है। राम और सुग्रीव की मित्रता भी विचारणीय है।। हर भाव जिससे हम साझा कर सकें और मन यह ना सोचें कि यह बताने से मित्र क्या सोचेगा?? वही मित्र है।। बाज़ औकात, मित्र हमारे भविष्य के बारे में भी हम से बेहतर जान लेते हैं। सबसे पहली मित्र,सबसे प्यारी मित्र मां होती है,किसी भी सच्चे और गहरे नाते की पहली शर्त मित्र होना है।। मित्र मजाक ज़रूर करते हैं,परंतु कटाक

सकल पदार्थ हैं जग माहि, करमहीन नर पावत माहि।।,(thought by Sneh premchand)

सकल पदारथ हैं जग मांहि,कर्महीन नर पावत नाहि।। स--ब कुछ है इस जग में,कर्मों के चश्मे से कर लो दीदार। क--ल कभी नही आता जीवन में, आज अभी से कर्म करना करो स्वीकार। ल--गता सबको अच्छा इस जग में करना आराम है। प--र क्या मिलता है कर्महीनता से,अकर्मण्यता एक झूठा विश्राम है। दा--ता देना हमको ऐसी शक्ति, र--म जाए कर्म नस नस मे हमारी,हों हमको हिम्मत के दीदार। थ-कें न कभी,रुके न कभी,हो दाता के शुक्रगुजार। हैं--बुलंद हौंसले,फिर क्या डरना किसी भी आंधी से, ज--नम नही होता ज़िन्दगी में बार बार। ग--रिमा बनी रहती है कर्मठ लोगों की, मा--नासिक बल कर देता है उद्धार। हि--माल्य सी ताकत होती है कर्मठ लोगों में, क--भी हार के नहीं होते हैं दीदार। र--ब भी देता है साथ सदा उन लोगों का, म--रुधर में शीतल जल की आ जाती है फुहार। ही--न भावना नही रहती कर्मठ लोगों में, न--हीं असफलता के उन्हें होते दीदार। न--र,नारी लगते हैं सुंदर श्रम की चादर ओढ़े, र--हमत खुदा की सदैव उनको मिलती है उनको उपहार। पा--लेता है मंज़िल कर्म का राही, व--श में हो जाता है उसके संसार। त--प,तप सोना बनता है ज्यूँ कुंदन, ना--द कर्म के से गुंजित होता है मधुर व

बुआ भतीजी