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और परिचय क्या दूं मां का????(( विचार सुमन सावित्री के))

माँ नहीं थी
 वह 
द्वार थी 
किवाड़ थी 
आँगन थी 
चूल्हा थी 
घर थी 
आसरा थी 
सहारा थी 
हिम्मत थी 
ख़ुशी थी 
प्यार थी 
नीम का पेड़ थी 
तीज का झूला थी 
होली के रंग थी 
अष्टमी की दुर्गा थी 
दीपावली का दीया थी 
 घर की रौनक़ थी 
हरियाली थी 
मस्त मगन मतवाली थी 
 जिजीविषा थी 
कर्म थी
संकल्प थी
सिद्धि थी
ख्वाब थी
हकीकत थी
संयम थी
समृद्धि थी
शीतल थी
सामंजस्य थी
बाजरे की खिचड़ी थी 
हुक्के की चिलम थी 
चूल्हे की महक थी
पापा की साथी थी 
अंजु बाला थी 
नीलम स्नेह थी 
राजा थी
प्रेम थी
स्नेह थी
परवाह थी
मेहनत की प्रकाष्ठा थी
संतुलित थी
सवेरा थी
जाड़े  में आंगन की धूप थी
सबसे प्यारा रूप थी
सुकून थी 
शीतल हवा थी 
चिकन पाक्स में,
रात भर सहलाती थी 
जाने इतना धीरज मेरी मां
कहां से लाती थी???
हर जगह थी 
सबके लिए थी 
सब कुछ करती थी 
और ख़ुश रहती थी 
अक्षर ज्ञान भले ही ना था
पर ज्ञान पुंज थी
कर्तव्य थी मां
जिम्मेदारी संग अधिकार थी मां
विकास थी मां,सुधार थी मां
बच्चों पर गर्व करती थी 
जोशबडे की दादी थी 
वो बस माँ नहीं थी 
वो बचपन थी 
पहचान थी 
हम सभी की जान थी 
माँमाँ नहीं थी वह 
द्वार थी 
किवाड़ थी 
आँगन थी 
चूल्हा थी 
घर थी 
आसरा थी 
सहारा थी 
हिम्मत थी 
ख़ुशी थी 
प्यार थी 
नीम का पेड़ थी 
तीज का झूला थी 
होली के रंग थी 
अष्टमी की दुर्गा माँ थी 
दीपावली का दिया थी 
रौनक़ थी 
हरियाली थी 
मस्त मगन मतवाली थी 
हारा थी 
बाजरे की खिचड़ी थी 
हुक्के की चिलम थी 
पापा की साथी थी 
अजूबाला थी 
नीलम स्नेह थी 
राजा थी 
सुकून थी 
शीतल हवा थी 
चिकन पाक्स में रात भर सहलाती थी 
हर जगह थी 
सबके लिए थी 
सब कुछ करती थी 
और ख़ुश रहती थी 
बच्चों पर गर्व करती थी 
जोशबडे की दादी थी 
वो बस माँ नहीं थी 
वो बचपन थी 
पहचान थी 
हम सभी की जान थी 
माँमाँ नहीं थी वह 
द्वार थी 
किवाड़ थी 
आँगन थी 
चूल्हा थी 
घर थी 
आसरा थी 
सहारा थी 
हिम्मत थी 
ख़ुशी थी 
प्यार थी 
नीम का पेड़ थी 
तीज का झूला थी 
होली के रंग थी 
अष्टमी की दुर्गा माँ थी 
दीपावली का दिया थी 
रौनक़ थी 
हरियाली थी 
मस्त मगन मतवाली थी 
हारा थी 
बाजरे की खिचड़ी थी 
हुक्के की चिलम थी 
पापा की साथी थी 
अजूबाला थी 
नीलम स्नेह थी 
राजा थी 
सुकून थी 
शीतल हवा थी 
चिकन पाक्स में रात भर सहलाती थी 
हर जगह थी 
सबके लिए थी 
सब कुछ करती थी 
और ख़ुश रहती थी 
बच्चों पर गर्व करती थी 
जोशबडे की दादी थी 
वो बस माँ नहीं थी 
वो बचपन थी 
पहचान थी 
हम सभी की जान थी 
माँ

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वही मित्र है((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कह सकें हम जिनसे बातें दिल की, वही मित्र है। जो हमारे गुण और अवगुण दोनों से ही परिचित होते हैं, वही मित्र हैं। जहां औपचारिकता की कोई जरूरत नहीं होती,वहां मित्र हैं।। जाति, धर्म, रंगभेद, प्रांत, शहर,देश,आयु,हर सरहद से जो पार खड़े हैं वही मित्र हैं।। *कुछ कर दरगुजर कुछ कर दरकिनार* यही होता है सच्ची मित्रता का आधार।। मान है मित्रता,और है मनुहार। स्नेह है मित्रता,और है सच्चा दुलार। नाता नहीं बेशक ये खून का, पर है मित्रता अपनेपन का सार।। छोटी छोटी बातों का मित्र कभी बुरा नहीं मानते। क्योंकि कैसा है मित्र उनका, ये बखूबी हैं जानते।। मित्रता जरूरी नहीं एक जैसे व्यक्तित्व के लोगों में ही हो, कान्हा और सुदामा की मित्रता इसका सटीक उदाहरण है। राम और सुग्रीव की मित्रता भी विचारणीय है।। हर भाव जिससे हम साझा कर सकें और मन यह ना सोचें कि यह बताने से मित्र क्या सोचेगा?? वही मित्र है।। बाज़ औकात, मित्र हमारे भविष्य के बारे में भी हम से बेहतर जान लेते हैं। सबसे पहली मित्र,सबसे प्यारी मित्र मां होती है,किसी भी सच्चे और गहरे नाते की पहली शर्त मित्र होना है।। मित्र मजाक ज़रूर करते हैं,परंतु कटाक

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