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कहां नहीं हो तुम नारी?????(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कहां नहीं हो तुम नारी??
हर क्षेत्र में तूने परचम लहराया

*व्यक्तित्व एक कृतित्व अनेक*
क्या खूब विधाता ने तुझे बनाया

मैने भगवान को तो नहीं देखा
पर जब जब देखा नारी को
 मां रूप में,
चित चेतना से आप्लावित हो आया

और परिचय क्या दूं तेरा???
मंगल पर तिरंगा तूने फहराया
किस क्षेत्र में नहीं है तूं नारी
घर बाहर दोनों में सामंजस्य खूब बिठाया

*चित में करुणा,संवेदना और कर्म ने जैसे स्थाई निवास बनाया*
मीठी बोली और मधुर वाणी ने
मकान को जैसे घर है बनाया

मां,बेटी,बहु, बहन,सखी,जीवनसंगिनी,
दादी नानी
हर किरदार बखूबी तूने निभाया

अपने अथक प्रयासों से 
संकल्प को सिद्धि से मिलवाया

कहां नहीं हो तुम नारी????
हर क्षेत्र में तूने परचम लहराया

हर ख्वाब को हकीकत का परिधान
नारी शक्ति ने पहनाया

शिक्षा भाल पर संस्कारों का टीका
सर्वप्रथम नारी तूने लगाया

जिंदगी के उलझे उलझे ताने बानो को
बड़े स्नेह संयम से तूने सुलझाया

तपिश लगी जब भी जीवन में,
तूने वात्सल्य का शीतल झरना बहाया

पहली शिक्षक,मित्र,अहसास,मार्गदर्शक
हर रूप तेरा शीशे सा चित में उतर आया
कहां नहीं हो तुम नारी???
हर क्षेत्र में परचम तूने लहराया

*धरा सा धीरज उड़ान गगन सी*
कोई इतना हौंसला कैसे लाया??
अपनी इस अद्भुत रचना को बना कर ईश्वर भी कितना होगा हर्षाया

*रीढ़ की हड्डी हो तुम नारी
सृष्टि की तुम धुरि हो नारी*
कोमल है कमज़ोर नहीं तेरा साया
कहां नहीं हो तुम नारी???
हर क्षेत्र में तूने परचम लहराया

किस पल नहीं है महिला दिवस
मुझे तो इतना समझ में आया

कहां नहीं हो तुम नारी???
जर्रा जर्रा तुम से हर्षाया



करुणा, स्नेह,ममता,वात्सल्य
कर्मठता,कर्मयोग और सहयोग
जिस एक ही छत तले साथ साथ मुस्कुराते हैं
वह मात्र है नारी चित,
मेरी छोटी सी समझ को तो नारी चरित्र के ये श्लाग्य आयाम ही समझ में आते हैं।।

ना____ री से है सृष्टि सारी
नारी ही नव जीवन का  करती संचार
री____ ढ की हड्डी कहना कोई अतिश्योक्ति नहीं है,
नारी जीवन का आधार

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