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आज की शक्ति है नारी( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*आज की शक्ति हो नारी
सुंदर मन और सुंदर विचार*

*ज्ञान की देवी,रूप का सागर
पल्लवित करती तुम्हीं संस्कार*

*जीवन की सच्ची पाठशाला हो तुम ,सपनों को देती हो आकार*

*माटी का ढेला तुम नारी
हर रूप में ढलना तुम्हें आता है*

*मां,बेटी,बहु,बहन पत्नी
खूबसूरत सा हर नाता है*

*कोमल हो कमज़ोर नहीं*
हो तुम सच्ची सलाहकार
जिंदगी के हर मोड़ पर
करती हो दरगुजर,करती हो दरकिनार
भिन्न परिवेश भिन्न परवरिश
सामंजस्य संतुलन संयम रहता है बरकरार

*उच्चारण नहीं आचरण में
 लाती हो
कथनी करनी सब एकाकार*
*आज की शक्ति हो नारी
सुंदर तन मन,सुंदर विचार*

*परिवार,समाज और देश संभालना तुम्हें बखूबी आता है*
*मान तुम्हारी शक्ति का लोहा,
जग भी शीश नवाता है*

*नारी शक्ति के ये अथक प्रयास हैं
जो चंद्रयान मंगल ग्रह पर तिरंगा 
फहराता है*
*सागर से भी गहरी हो तुम नारी
शक्ति तुम्हारी अनंत अपार*

*आज की शक्ति हो नारी
सुंदर तन मन,सुंदर विचार*

*स्वर्णमयी सी चेहरे पर आभा
लबों पर सदा मधुर मुस्कान*
*कैसी भी चाहे आए मुश्किल
निकाल ही लेती हो समाधान*

*तुम बिन विश्व की कल्पना करना भी लगता विचार ये अति नादान*

*कल्पना चावला या फिर किरण बेदी*
नारी तुम देश की सच्ची शान

*हिंसा और विध्वंस में नहीं,
सृजन नारी का अधिकार*
*बच्चों की पहली शिक्षक नारी
शिक्षा संग देती वही संस्कार*

*धरा सा धीरज,उड़ान गगन सी
केंद्रित होता सदा लक्ष्य तुम्हारा*
*विचलित न होती कभी अपने पथ से,
सत्कर्मों से ना कभी करती किनारा*

*वर्चस्व तुम्हारा चहुं दिशा में कायम
पूर्ण विश्व में एकाधिकार*
*आज की शक्ति हो नारी
सुंदर तन मन,सुंदर विचार*

*सहनशीलता की मूरत
चंदा सी सूरत*
ज़र्रे जर्रे को होता तुम से प्यार
अदभुत कार्य क्षमता तुम्हारी,
आज तलक कोई पा सका ना पार
कहां नहीं हो तुम नारी???
कण कण में चेतना,जिजीविषा,पर्व,
उत्सव,उल्लास का करती हो संचार

रीढ़ की हड्डी तुम समाज की,
जानो प्रेम ही हर रिश्ते का आधार
सरल,सहज,सौम्य,विनम्र तुम
धीरज तुम्हारा सच्चा श्रृंगार

उपलब्ध सीमित संसाधनों में
करती हो द बेस्ट
सोच, कर्म,परिणाम की त्रिवेणी की बहा देती हो बयार

संकल्प से सिद्धि तक के सफर में कभी नहीं मानती हो हार
हर धूप छांव में चलती रहती हो,
नहीं रुकना हुआ तुम्हें कभी स्वीकार

*बहुत अच्छे से जानती हो तुम
कर्म ही व्यक्ति का अलंकार*
*आज ही शक्ति हो नारी
सुंदर तन मन सुंदर विचार*

*करुणा ने पूछा प्रेम से
प्रेम ने पूछा धीरज से
धीरज ने पूछा विनम्रता से
विनम्रता से पूछा कर्मठता से

कर्मठता ने पूछा तालमेल से
रहते हो कहां सारे के सारे
एक ही सुर में बोले सब मिल कर
और कहां??? 
नारी चित के  घर द्वारे*
नारी चित के घर द्वारे


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