*महिमा मंडित भले ही ना करो नारी को,
वह जैसी है उसे वैसी ही रहने दो*
*बात है जो भी दिल में उसके
वह बात तो खुलकर कहने दो*
*कहीं बन न जाए चित में कोई ग्रंथि मन की पाती पढ़ने दो*
*ना सिद्ध करो उसे पुरुष से बेहतर उसे जीवन अपना जीने दो*
*तुलना के भंवर में ना उलझाओ उसको,
उसे सहज भाव से रहने दो
उसे सहज भाव से रहने दो*
*महिमा मंडित भले ही ना करो नारी को,
वह जैसी है उसे वैसी ही रहने दो*
मत बांध बनाओ उसकी इच्छाओं के आगे,
उसे नदिया धारा सा बहने दो
अपना रास्ता खुद ही बना लेगी वो,
अपने मानचित्र उसे स्वयं ही
रचने दो
*स्वयं को सिद्ध न करना पड़े
उसे बार-बार
उसे स्वयं सिद्ध ही होने दो
उसे स्वयं सिद्ध ही होने दो*
*महिमा मंडित भले ही ना करो नारी को,
वह जैसी है उसे वैसी ही रहने दो*
*नारी तन के भूगोल को जानने की बजाय जानो मनोविज्ञान उसका
धारा प्रेम की बहने दो
धारा प्रेम की बहने दो*
*महिमा मंडित भले ही ना करो नारी को,
वह जैसी है उसे वैसी ही रहने दो*
*करने दो उसे विचरण अंतर्मन के गलियारों में
एहसासों को अभिव्यक्ति देने दो एहसासों को अभिव्यक्ति देने दो*
*इतनी तो उसे दो आजादी
वह सोचे,समझे,जाने जग को अपने ही नजरिए से,
उसे खुद ही नजर सब आने दो
उसे खुद ही नजर सब आने दो*
*बेटी,बहन,पत्नी,मां के अलावा वह एक व्यक्तित्व भी है
उसके अस्तित्व को आजाद मस्त सा रहने दो*
*खो ना जाए कहीं उसकी अल्हड़ता वह जैसी है उसे वैसी ही रहने दो*
उसकी इच्छा,शौक, ख्वाइशों, प्राथमिकताओं को प्राथमिक रहने दो
पंखों को दो परवाज उसके,
उसे अनंत गगन में उड़ने दो
अच्छी बुरी के मापदंड बना रखे हैं जो सब ने मिलकर,
उन मापदंडों को बिन विश्लेषण के रहने दो
मत करो आंकलन उसके रूप रंग, चाल ढाल का,
उसे स्वाभाविक सा रहने दो
वह सोन चिरैया है अपने बाबुल के चमन की,
उसे पंख फैलाकर उड़ने दो
उसे पंख फैलाकर उड़ने दो
कुछ ना कहना,बस चुप रहना समझौते करना बहुत हुआ
अब खामोशी को
कोलाहल करने दो,करने दो
कब तक समझौते करती रहेगी नारी पुरुष प्रधान से इस समाज में, नारी को बस नारी होने दो,होने दो
महिमा मंडित भले ही ना करो नारी को वह जैसी है उसे वैसी ही रहने दो।।
घुटन ना हो कभी शोषण ना हो
मनमर्जी से उसे सब करने दो
हर बिखराव को समेटती है नारी
उसे उसकी सरहदों में सिमटने दो
मत चीखों कभी उस नारी पर
उसके मन के सौंदर्य को खिलने दो
नारी मन है सागर से भी गहरा
उसे अपनी गहराइयों में उतरने दो
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