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कह सकें हम जिनसे बात दिल की(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कह सके हम 
जिन से बात दिल की,
*वही मित्र हैं*

हर धूप छांव में 
जो संग खड़े हों 
*वही मित्र हैं*

संवाद और संबंध 
जिनसे रहें सदा ही मधुर,
*वही मित्र हैं*

जब भी हो मुलाकात
 उसमे हो बात
*वही मित्र हैं*

संकोच ना हो जिनसे,
*वही मित्र हैं*

दिल जिनके संग बच्चा रहे सदा,
*वही मित्र हैं*

मन आह्लादित और तन पुलकित रहे संग जिनके,
*वही मित्र हैं*

स्नेह सुमन चित में
 खिल जाएं संग जिनके,
*वही मित्र हैं*

मित्र की परिभाषा 
मुझे तो यही समझ में आती है
धुंधला होता है जब भी कोई मंजर,
मित्र की छवि सब साफ कर जाती है।।




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