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Showing posts from May, 2024

बहुत कुछ साथ ले कर जाता है एक एल आई सियन

बरसों

राम नाम

किताब को

कविता

सीखना है तो

कह दिया

राम नाम की

राम ही चित

वक्त

नदियां

वक्त

सोच कर बोलो

रिश्तों के तार

यादों के

जितनी बड़ी होती जाती हूं(( अनुभूति स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

 चित में करुणा,जेहन में परवाह,दिमाग में उज्जवल भविष्य की सोच पल पल पल्ल्वित किए जाती है जितनी बड़ी होती जाती हूं उतनी ही मां अधिक समझ में आती है उपलब्ध सीमित संसाधनों में भी जाने इतना हौंसला कहां से लाती है मुस्कान के पीछे छिपे दर्द भी देख लेती हूं अब मैं, बेशक मां कुछ भी नहीं  बताती है जाने कितनी ही झगड़ों पर मां शांति तिलक लगाती है हमारे हर ख्वाब को हकीकत में बदले जाती है ना गिला ना शिकवा ना शिकायत कोई, मां गंगोत्री से गंगा सी निश्चल निर्बाध बहे जाती है लब कुछ नहीं कहते मां के पर आंखें सब बयां कर जाती हैं कितनी भी आ जाए परेशानी अपनी खामोशी को कभी कोलाहल नहीं बनाती है हमारे हर ख्वाब को हकीकत में बदले जाती है चित में वात्सल्य,जेहन में सामंजस्य,दिमाग में दूरदर्शिता मां ताउम्र लिए जाती है जब सब पीछे हट जाते हैं मां आगे बढ़ कर आती है कैसा भी हो परिवेश कैसी भी  परस्थिति  मां वात्सल्य का कल कल झरना बहाती है शक्ल देख हरारत पहचान  लेती है मां मुझे तो मां सच ईश्वर नजर आती है अ धिकार भले ही ना ले मां पर जिम्मेदारियां ओढ़ती जाती है सब ख...

सच में ऐसी सी होती है मां(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

संवाद

विकास दिव्यकीर्ति(( सम्मान स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

शक्ति

शुक्रगुजार

गलती

खुश

जिंदगी

एक दिन आना

मैं शायर तो नहीं

मां की किताब

मैने कहा

धड़कन

गोधूली

हर घड़ी

थकती नहीं

सबसे लंबा

कार

आत्मा

लय ताल गति

संसार

writer

शक्ति

योग

चिंता का कारण

गांठ

रिश्तों के धागे

रास्ते

सच्चे मित्र