आज सोचा तो मुझे बहुत कुछ याद आया
कितना पावन कितना शीतल था मेरी मां का साया
आज सोचा तो याद आया मुझे मेरा बचपन जहां मां पापा का होना ऐसा था जैसे दिल में धड़कन का होना,जैसे नयनों में ज्योति का होना
आज सोचा तो मुझे याद आया हर प्रश्न का उत्तर मां कैसे पल भर में बन जाती थी
चाहिए होती थी कोई चीज मुझे तो,
पल भर में ही ले आती थी
आज सोचा तो याद आया मेरी मां की कितनी ही अनदेखी अनकही कहानियां बन गई होंगी अनदेखा इतिहास
मां कहती नहीं करती थी
यूं हीं नहीं लोग भी मां को कहते थे अति खास
आज सोचा तो याद आया मां का ऐसा संकल्प लेना जिसे सिद्धि से मिलाने का लक्ष्य मेरी मां ने ठाना था
हालात विषम रहे चाहे कितने ही,
लेकिन उन्हें कभी ना बाधा माना था
आज सोचा तो याद आया मां का जोश जज्बा और जुनून जिसे मां ने ताउम्र निभाया था
कथनी नहीं करनी में विश्वास था मेरी मां का,मां का कितना शीतल साया था
आज सोचा तो याद आया मां का गांव से शहर आना दो बेटों संग रोहतक में एक नई गृहस्थी बसाना
तिनका तिनका जोड़ कर एक नया इतिहास रचा ना
समय संग सात बच्चों को बेहतर नहीं बेहतरीन पढ़ाना लिखाना
आज सोचा तो याद आया वो गुजरा जमाना
हर संज्ञा,सर्वनाम,विशेषण का बोध कराने वाली मां का प्यारा सा अफसाना
आज सोचा तो याद आया किसी अभाव के प्रभाव में मां का ना आना
जो सोचा किए प्रयास उसी दिशा में
लगा रहता था लोगों का आना जाना
आज सोचा तो याद आया मां का कर्म की सतत ढपली बजाना
ना कोई शिकायत ना कोई रंजिश माथे पर,बस आता था मां को प्रयासों का पुल बनाना
आज सोचा तो याद आया मां का शकल देख हरारत पहचान लेना
अच्छी सी चाय और नमक मिर्च का
अति स्वाद सा परांठा देना
याद आया वो चूल्हे पर रोटी बनाना
कभी कभी तंदूर की रोटी,भरता बनाना
याद आया वो मधानी चलाना
वो नूनी घी और लस्सी बनाना
याद आई वो आलू गोभी की सब्जी
वो बैंगन का भर्ता बनाना
आज सोचा तो याद आया
वो उखल मूसल से बाजरे की खिचड़ी बनाना
वो खाट पर पापा का तंबाखू सुखाना
वो दीवाली पर ईंटों को रगड़ रगड़ लाल बनाना
वो भैंसों की रंग बिरंगी गल पट्टी बनाना
याद आया मां का होलिका जलाना
याद आया मां का विशेष स्नेह दिखाना
याद आए वो 42 दिन मां ने जो संग मेरे चिड़ावा में बिताए थे
सच में कितने अनमोल से पल थे वे,
हूं भाग्यशाली जो मैंने पाए थे
आज सोचा तो याद आया
मां का भाई के लिए अगाध प्रेम
उसके पटियाला जाने पर सिर पर बांध के कपड़ा निढाल सा हो जाना
याद आया कभी पा को कभी भैंसों को मां का खोज कर लाना
याद आया मुझे रोज भिंडी की सब्जी देना
याद आया मां का प्यार से हंस देना
याद आया मां का कभी कभी वाला गाना सुनना
11 स्वर और 33 व्यंजनों में नहीं वो शक्ति हो मेरी मां का कर पाएं बखान
सच में बहुत छोटा है शब्द मेरी मां के
लिए महान
आज सोचा तो याद आया मां का अंजु के पास विदेश जाना
फिर वहां घटी घटनाओं को बड़े विस्तार से सब को सुना ना
याद आया मां का पावनी के लिए दिल्ली जा कर रहना
कितनी भी हुई परेशान हो,
पर उसका अपने लबों से कुछ ना कहना
आज सोचा तो याद आया
मां का 7 बच्चों की शादियां करना
15 बच्चों के जन्म पर योजनाबद्ध तरीके से सब कुछ करना
याद आया जीवन की सांझ में
अपने ही घर से दूर हो जाना
याद आया मां का वो कहना
पापा के बाद तो टणका खो जाना
याद आया मां का रामे की बहु संग
सिनेमा हाल जाना
याद आया मां का फंदा फंदा बुन हर बच्चे ले लिए स्वेटर बनाना
याद आया पापा संग सीरियल देखना
याद आया वो समय जब तीन महीने मिठू के जन्म से पहले मां संग बिताए थे
मां मात्र मां ही नहीं सबसे अच्छी मित्र थी मेरी,मां के कितने शीतल साए थे
कौन कहता है एक दिन को मदर्स डे
मां के जग से जाने के बाद भी,
आज वो लम्हे बहुत याद आए थे
आज सोचा तो लगा मां की सेवा से बड़ा कोई धर्म नहीं
मां को थोड़ा समय और प्यार देने से बड़ा कोई कर्म नहीं
मां से बड़ी कोई जन्नत नहीं
मां से बढ़ कर कोई तीर्थ धाम नहीं
मां से बड़ा कोई भगवान नहीं
मां है जिसके पास जगत में
उससे बड़ा कोई धनवान नहीं
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