पहली बारिश की सौंधी खुशबू सी मीठी मीठी मा,
सुंदर भोर में कोयल की कूक सी,
तपती धूप में मटके के पानी सी,
सुंदर बरखा में मोर के नाच सी मोहक मा,
कड़क जाड़े में सुलगती अंगीठी सी प्यारी मा
अनन्त गगन में उड़ते पंछी सी अच्छी मा
शक्ल देख कर हरारत पहचानने वाली मा
सच मे मा ऐसी ही होती है,किसी को जल्दी समझ आता है,किसी को देर से,पर आता ज़रूर है
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