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खाना तो वह खाता है(( मात पिता और बच्चों के नाते पर विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*खाना तो वह खाता है
पर पेट मेरा भर जाता है
मां बच्चों का इस जग में
सबसे न्यारा नाता है*

*सोता तो वह है बेफिक्री से
नींद पूरी मेरी हो जाती है
आंखों से ओझल होता है जब
याद फिर पल पल आती है*

*संगीत तो वह बजाता है
पर नाद मन में मेरे बज जाता है
अहसास उसके बन जाते हैं अहसास मेरे,रोम रोम पुलकित हो जाता है*

*जाता तो है वह घूमने
पर भ्रमण मेरा हो जाता है
धुआं धुआं सा हो जाता है मन
जब तलक लौट नहीं घर आता है*

*मात पिता से बढ़ कर नहीं कोई हितेषी बच्चों का,
मेरी छोटी सी समझ को इतना सम्मझ में आता है*

Comments

  1. यही तो है माँ और बच्चे हैं उसकी असली ताक़त। माँ यूँ ही नहीं कहलाती सृजन कर्ता, बूँद बूँद सींचती है जब सालों, बनती है तब उसकी कृति सम्पूर्ण।

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    1. बहुत बढ़िया टिप्पणी ज्योति बहुत बहुत शुक्रिया

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  2. माँ की ममता ऐसी ही होती है

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