माँ पापा से ही होता है पीहर और मायका
वो नहीं रहते तो तो मिलता नहीं घर जाने में ज़ायक़ा ..
खो जाता है वो घर वाला सुकून और चैन
जहां बचपन के बीते अनेकों दिन रैन
माँ सा मिलता नहीं कोई कहीं
बस मन में रह जाती हैं सब यादें बसी
जब वो थे तो लगता था हमेशा ही रहेंगे
अब नहीं हैं तो ढूँढता है मन …
जबकि जानती हूँ कि अब वो कहीं नहीं मिलेंगे
समेटे उनकी यादों को अपने अंदर
चल रही हूँ जैसे लिए अपने भीतर एक समंदर
यूँ तो खामोशी सी छाई है मुख पर
पर दिल की गहराइयों में पल रहा है बवंडर
उत्कृष्ट कृति 🫶
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