बेटियां अपने ही घर हो जाती हैं मेहमान
भाई से लड़ झगड़ कर खाने वाली
पहले आप पहले आप का करने लगती हैं गान
करती हैं संवाद बड़े संभल संभल कर,छोड़ सहजता औपचारिकता का पहन लेती हैं परिधान
अच्छा नहीं लगता मुझे जब
बच्चे संवाद और संबोधन दोनों ही कर देते हैं कम
अच्छा नहीं लगता मुझे जब
पीहर से जाते हुए मां को देख आंखें हो जाती हैं नम
अच्छा नहीं लगता मुझे जब
पल पल साथ रहने वाले भाई बहन
एक दूजे से फोन कर कुशल क्षेम
पूछने से भी कतराते हैं
अच्छा नहीं लगता मुझे जब
भाइयों को बहनों के घर दस्तक दिए बरसों बीत जाते हैं
क्यों मात पिता के जाने के बाद भाई पिता सी प्रीत नहीं निभाते हैं???
अच्छा नहीं लगता मुझे जब
बेटे दुख दर्द बांटने की जगह वसीयत बांटने आ जाते हैं
जीवन की सांझ में मात पिता संग रहने में उनके लफ्ज़ और लहजे दोनों ही बदल जाते हैं
अच्छा नहीं लगता मुझे जब
एक ही छत तले मात पिता और बच्चे अलग अलग रसोई बनाते हैं
ऐसा तो हो ही जाता है दे कर कुतर्क वे सामान्य सा हो जाते हैं
मात पिता को तन्हा छोड़ उनके हिवड़े भी नहीं अकुलाते हैं
ऊंगली पकड़ कर चलना सिखाने वाले मात तात के जीवन की सांझ में लड़खड़ाते कदम उन्हें नजर नहीं आते हैं
अच्छा नहीं लगता मुझे जब
शहरों में वृद्धाश्रम नित नित भरे जाते हैं
जो पल भर भी हमें दूसरे कमरे में भी नहीं छोड़ते,
उन्हें बुढ़ापे में यूं आश्रम में कैसे छोड़े जाते हैं
अच्छा नहीं लगता मुझे जब
सागर से वजूद वाले मात पिता किसी छोटी सी बावड़ी में तब्दील हुए नजर आते हैं
धड़धड़ाती ट्रेन से वजूद वाले मात पिता किसी सहमे हुए बच्चे से बन जाते हैं
अच्छा नहीं लगता मुझे जब
किसी को किसी के दर्द नजर नहीं आते हैं
अक्षर ज्ञान भले ही मिल जाता हो
पर संस्कार कहीं सो से जाते हैं
अच्छा नहीं लगता मुझे जब
हमें बोलना सिखाने वाले मात पिता
हमारे दो बोल सुनने के लिए तरस से जाते हैं
अच्छा नहीं लगता मुझे जब
बच्चे कहते हैं आपने हमारे लिए किया ही क्या है???
क्या उनको मात पिता के प्रयास नजर नहीं आते हैं
हमें हमसे भी अधिक चाहते हैं मात पिता ये सत्य भूले जाते हैं
संवाद,संबोधन से ही मधुर होते हैं संबंध क्यों परिवेश को परवरिश पर हावी किए जाते हैं
मुझे तो अच्छा नहीं लगता
क्या आपको लगता है?????
स्नेह प्रेमचंद
कितना खूब लिखा है आज के युवा मनुष्य की सच्चाई....को बतलाने वाली कविता.... हर पड़ाव को बहुत ही अच्छे से कविता में समाया है.....
ReplyDeleteअच्छा नहीं लगता मुझे बेटियां अपने ही घर मेहमान बन जाती है....
अच्छा नहीं लगता मुझे शहरों में वृद्ध आश्रम नित नित भरे जाते है...
क्यूं संस्कार सो जाते है...
बहुत ही हृदय को छूने वाली पंक्तियां 😊
Bahut khoob
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