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एक सा परिवेश एक सी परवरिश(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

एक सा परिवेश एक सी परवरिश
पर किस्मत चारों ने अलग अलग पाई

मां की मेहनत और कर्मठता सच में एक दिन रंग लाई
अपने सामर्थ्य से अधिक किया मां ने आज सोचा तो बात समझ में आई

कर्म बदल सकता है भाग्य
मां आचरण में बात ये लाई
कभी रुकी नहीं कभी थकी नहीं
अभावों की नहीं दी कभी दुहाई

मित्र सी रही मां तूं हमारी
सच हम चारों रही तेरी परछाई
हम सरगम तूं सुर रही मां
हर मोड़ पर तेरी याद आई

Comments

  1. कितना सुन्दर लिखते हो मेम मुझे तो निशब्द ही कर दिया.....
    स्नेह मेंम के रूह में मां और मां जाई कुछ ऐसे है समाई जैसे तन में सांस समाई....

    सावित्री जी को मां के रूप में भगवान से पाया और नीलम ,बाला (सुमन), अंजू मेम जैसी मां से पाई इन्होंने मां जाई ये सभी इनके हृदय में धड़कन की तरह है समाई ..

    स्नेह मेम की सुबह और शाम में हमेशा रहती है एक शहनाई याद आई मां और मां जाई..

    नजर ना लगे इनके रिश्ते को भावो को
    ऊंवारु में तो इन पर नमक और राई.

    भावना से ओत-प्रोत पंक्तिया
    बहुत ही सुन्दर तस्वीर है ये
    Gorgeous 😍

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  2. सच में तुम्हारी प्रतिक्रिया का कोई जवाब नहीं,इतना प्यारा तो कोई बहुत ही खास लिख सकता है बहुत शुक्रिया

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