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एक पल का भी नहीं भरोसा(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

एक पल का भी नहीं भरोसा तेरा बंदे
फिर क्यों तेरा मेरा का तराना है

जाने कब आ जाए शाम जीवन की
जाने कौन सा सवेरा बिन तेरे आना है

ओ माटी के पुतले!
एक दिन माटी में ही मिल जाना है

विरहनी आत्मा का मिलन हो जाएगा
प्रीतम परमात्मा से,
चार दिनों की जिंदगी,फिर तूं टुर जाना है

सब यहीं रह जाएंगे कुटुंब कबीले
बंद मुट्ठी आया था जग में,
खाली हाथ पसारे जाना है

आज तेरी कल मेरी है बारी
दस्तूर ए आवागमन पुराना है

नई कोंपले आती हैं जग में
पीले पतों को समय संग झड़ जाना है

कभी धूप कभी छांव है जिंदगी
खुशी गम का लगा रहता आना जाना है

Comments

  1. कितनी सुंदर कृति हृदय को छूने वाली लिखी है जीवन की सबसे बड़ी सच्चाई एक दिन तो होनी है इस संसार से विदाई...
    फिर क्यूं करें इतनी बाते पराई ये तेरा ये मेरा सब यही है रह जाना यह है जीवन की सबसे बड़ी सच्चाई..
    फिर क्यूं बाते करता है मनुष्य जिसमे छिपी हो लाखो बुराई..
    करनी चाहिए मनुष्य को बुरे विचारों की हृदय से सफाई ...
    इसी में खुद की और संसार की भलाई...
    क्यूंकि एक दिन होनी है इस संसार से विदाई ..


    आत्मा मिल जाएगी परमात्मा से ये देश तेरा है बेगाना
    बहुत ही सुन्दर पंक्ति

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