भेज रहा हूं स्नेह निमंत्रण
पढ़ मेरी बहना तूं आ जाना
मैं प्रेम कपाट रखूंगा खोल कर
तूं बिन दस्तक के आ जाना
यूं मत आना कि आना चाहिए था
जब दिल में उठें हिलोरें,
तभी मेरे शहर का टिकट कटाना
कितने हक से लड़ती थी तुम बचपन में,
छीना झपटी में भी स्नेह का बन जाता था फसाना
पल भर भी अलग नहीं रहते थे बचपन में,
सच में बदल गया है जमाना
बेशक कह नहीं पाता मैं
पर जब जब आती है तूं
चला जाता हूं अतीत में मैं भी
लगता है भला सा तेरा मेरी चौखट पर आना
याद आता है मुझे
जब जिंदगी का परिचय हो रहा था अनुभूतियों से,संज्ञा सर्वनाम विशेषण का जिंदगी गा रही थी गाना
माना राहें बदल गई हैं मां जाई
तेरी मेरी अब,पर एक ही परिवेश
एक ही परवरिश में शुरू हुआ था
जिंदगी का तराना
मां की महक आती है मां जाई तुझ में
देख मुझे कभी तूं भूल न जाना
बेशक मसरूफ हो गए हैं हम अपनी अपनी जिंदगी में,
Very emotional
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर हृदय को छूने वाली कविता कितना सुन्दर था वो बचपन का जमाना दिल में छुपा हुआ है बचपन की यादों का खजाना
ReplyDeleteवो तेरे पास रहना कभी न दूर जाना खेल में खो जाना झगड़े में एक दूसरे को धमकाना आता है मुझे बहुत याद बहुत सुंदर था वो बचपन का जमाना..
बहुत ही सुन्दर पंक्ति
यूं मत आना कि आना चाहिए था
जब दिल में उठें हिलोरें,
तभी मेरे शहर का टिकट कटाना
यहां होता है हमेशा बेझिझक आना
कभी ना करना तू ना आने का कोई बहना मन हो जब बिन सोचे मेरी दहलीज पर तू चले आना
मिलेगा यहां तुझे खुशियों का खजाना
सब पर हमेशा तू अपना अपनापन बरसाना
मां की महक आती है मां जाई तुझ में
देख मुझे कभी तूं भूल न जाना
क्यूंकि मेरे लिए तो बस तू ही है सारे का सारा जमाना कभी ना करना तू मुझे बेगाना मन में उठे हिलोरें तब तू
बस चली आना तू ही तो है मेरा सारा जमाना
बहुत अच्छी प्रतिक्रिया
ReplyDeleteभावपूर्ण दिल को छू गई
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