वो पुराना घर मेरे आज भी
सपनों में आ जाता है
जहां जीवन का परिचय
हुआ था अनुभूतियों से,
जाने क्या क्या मानस पटल
पर छा जाता है
वो लाल चंद कॉलोनी,वो सामने एल आई सी का ऑफिस आज भी जेहन में बसा जाता है
वो मां का सिर पर जबर भरोटा लाना फिर पशुओं का चारा काट काट करना तैयार
वो कभी रुकती नहीं थी,थकती नहीं थी,मां सच में जीवन का सुंदर सार
मानों चाहे या ना मानो
मां हम सबके जीवन की रही शिल्पकार
ना गिला ना शिकवा ना शिकायत कोई,
मां बेहतर को बेहतरीन करने का बना ही लेती थी आधार
आज भी याद आ जाता है वो पुराना घर मुझे,
जहां मां बाबुल के साए तले बचपन महका करता था
जहां कोई चित चिंता नहीं होती थी,
मन झूम के चहका करता था
जहां पत्ते,लल्लन,भादर,पारस कृष्णा,प्रेम,इंदर,ज्योत्सना, खातन ताई जी कितने ही होते थे किरदार
मां का सबसे ताल मेल होता था गहरा, काबिल ए तारीफ रही मां की मधुर बोली और मधुर व्यवहार
जहां ईंटों को भी बोरी से लाल लाल रगड़ा जाता था
जहां भैंसों के गले में भी गलपट्टी का हार पहनाया जाता था
जहां मां करती थी कर्म सदा,
हमारे ख्वाबों को हकीकत में बदलती थी
उपलब्ध सीमित संसाधनों में भी
मां जाने क्या क्या करती थी
जहां पिता सौ पापड़ बेल आमदनी बढ़ाया करते थे
शनिवार को भरी गर्मी में गेहूं लेने
जाया करते थे
जहां चूल्हे पर रोटी मां बड़े प्रेम से पोती थी
जहां एक ही खटिया पर मां तीनों बहनों संग सोती थी
अभाव का जहां प्रभाव ना था
जहां खुशियां एक समोसे और किराए की साइकिल में होती थी
जहां 9 जनों का भरा पूरा प्यारा सा परिवार था
जहां ये प्यारा परिवार ही हमारा छोटा सा संसार था
जहां पर और भी जाने कितने ही लोग आ जाते थे
मां सबको खाना खिलाती थी वे आकंठ तृप्त हो जाते थे
जहां कभी कपड़ों का कभी गेहूं का कभी भैंसों का होता था व्यापार
कर्म का अनहद नाद बजा करता था सदा,कर्मठता कभी मानती नहीं थी हार
मां की अथक मेहनत और प्रयास जहां खुल कर मुस्कुराते थे
जहां प्रयास मिल कर उपलब्धियों की चौखट सदा खटखटाते थे
जहां समय संग नए नए जुड़े रिश्तों के तार
बहुओं और दामादों से बदल गया था हमारा संसार
मां पापा के होने से पीहर जाने की कसक सताती थी
उनका साया सिर पर होने से जिंदगी बेफिक्री की तान बजाती थी
आती थी जब गर्मी की छुट्टियां
झट जाने की तैयारी हो जाती थी
जगह की दूरी से भी दूर नहीं होते थे हम,
सारी बहनें मां के पास दौड़ी आती थी
समय संग बदल गए हैं दौर अब
वो पुराना घर ही आज भी सपनो में आता है
बचपन साथ सदा चलता है बचपन जेहन से कभी नहीं जाता है।।
क्या खुब लिखा है.. वो पुराना घर आज भी मेरे सपनो में आता है.....
ReplyDeleteसही कहा....
भला बचपन का महल कभी ज़हन जाता है क्या...?
वो राजकुमारी जैसी बहने राजकुमार जेसे भाई और राजा रानी जैसे माता पिता उनके संग खाना खेलना कभी भूला जाता है क्या..?
नहीं कभी नहीं इनसे तो जन्मों जन्मों का नाता है जो हर पल हर कल जहन को याद आता हैं क्यूंकि ये बचपन का सबसे सुंदर काल कहलाता हैं जिसका हर पल हर क्षण दिल को हमेशा भाता है इनसे जीवन का गहरा नाता है ..
जहां अभाव का ना था कभी प्रभाव..
इतवार को करना होता था मेहनत का प्रहार तभी तो मिलता था एक समोसा और साइकल पाने का उच्च उपहार
जो करता था मन को खुश हर बार...
वो बचपन काल कभी जहन से जाता है क्या जो हमेशा प्यारे प्यारे पलों से जहन मैं हमेशा समाता है मुझे तो बस इतना समझ आता है ये समय जीवन का सबसे सुंदर कहलाता हैं ...
बहुत सुन्दर कविता हृदय को छूने वाली 🎀
दिल को छूने वाली कविता
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