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योग प्राथमिक है जीवन में(( poem on yog by sneh प्रेमचंद))

*तन मन आत्मा*तीनों की शुद्धि
सर्वशक्तिमान होने का होता है ज्ञान

जुड़ जाते हैं जब तार मन के प्रभु से
तब योग करे पूरा कल्याण

*सकारात्मक दृष्टि और वैश्विक सृजन*
दोनों ही योग के अदभुत वरदान

योग बनाए स्वावलंबी,आत्मनिर्भर
यही योग को सच्ची पहचान

*योग प्राथमिक है जीवन में*
श्वाषों की माला में सिमरे प्रभु का नाम

*योग में ही छिपा हुआ है आध्यात्मिक शक्ति का अक्षय भंडार*
सीमित रहेगा गर क्षेत्र इसका,
फिर आध्यात्मिक चेतना का कैसे होगा प्रसार????

एकांगी स्वरूप से न हो संतुष्ट इसके
सम्पूर्ण स्वरूप को ये करे आत्मसात
आसन प्राणायाम ही योग नहीं हैं
अष्टांग योग से आएगी नई प्रभात

नहीं वर्ग विशेष की है ये धरोहर
धनी निर्धन सबका इस पर अधिकार
पहुंचा जन जन तक पैगाम अनोखा
हुआ मानव को योग से सच्चा प्यार

योग आयुर्वेद का हो जीवन में अधिकाधिक प्रचार प्रसार
वैदिक संस्कृति की हो पुनर्स्थापना
हो योग जीवन का सुदृढ़ आधार

मानवता का हो संरक्षण
स्वास्थ्य का हो सही संवर्धन
चले ना एक ही ढर्रे पर हम
लाएं जीवन में समुचित परिवर्तन

प्राथमिकताएं तय करने में
और करें ना अधिक विश्राम
योग प्राथमिक है जीवन में
श्वाशों की माला में सुमरें प्रभु का नाम

Comments

  1. बहुत ही सुन्दर कृति योग दिवस पर योग का महत्व है बताती हर पंक्ति करती है योग से हटाने का वृत्तांत...

    योग से हटाओ जिंदगी के सारे रोग
    होता है इससे जीवन का हर मोड बेरोग ...
    करो योग हटाओ जीवन से व्याधि होगी उम्र ज्यादा जीवन के हर मोड पर मिलेगी की स्वस्थ शरीर की उपाधि ....

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