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Showing posts from July, 2024

मुबारक मुबारक

जन्मदिन मुबारह हो विश्वदीप

बेचैनी और सुकून

बेचैनी और सुकून एक दिन बेचैनी ने कहा सुकून से हो शांत से गहरे सागर तुम, थाह तुम्हारी किसी ने न पाई। मैं नदिया के भँवर के जैसी चंचल कोई शांत,सीधी, उलझी सी राह न दी मुझे कभी दिखाई। कहा सुकून ने बेचैनी से, होता है जहाँ मोह,काम,क्रोध और भौतिक सुखों को पाने की तीव्र लालसाएँ। तुम दौड़ी सी आ जाती हो वहाँ पर, ठहराव नही दिखाई देती तुम्हे राहें।। नही ज़रूरी मैं रहूं महलों में, मुझे तो फुटपाथ भी आ जाते हैं रास। पर तुम तो कहीं भी नही टिक पाती, पूरे ब्रह्मांड में तुम्हारा नही है वास।। जिस दिन तुम्हे जीवन की सही सोच समझ मे आएगी। विलय हो जाओगी तुम उस दिन मुझमे, बेचैनी सुकून बन जाएगी।।

परिचय माधव का(( स्नेह प्रेमचंद))

अपना परिचय देते हुए केशव के प्रकट हुए कुछ यूँ उदगार, मैं ही सुख हूँ,मैें ही दुःख हूँ, हूँ मै ही साकार और निराकार, पाण्डवोंकी जीत मैं हूँ,  हूं मैं ही तो कौरवों की हार, पितामह के बाणो की  शय्या मैं हूँ, हूँ मैं ही सृजन और संहार, द्रौपदी का लुटता आँचल हूँ मैं,  हूँ मैं ही गांधारी की ममता की हार, अर्जुन का धनुष हूँ मैं,  हूँ  मैं ही एकलव्य के अन्याय का सार, मैं दुर्योधन की  घायल जांघ हूँ, हूँ मैं दुशासन की फटी छाती की पुकार, धरा भी मैं हूँ,गगन भी मैं हूँ, हूँ मैं ही अधर्म पर धर्म की जीत का हार