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आधी जागी आधी सोई(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

आधी जागी, आधी सोई
थकी दोपहरी जैसी माँ

कुछ न कुछ हर पल वो करती
कर्म की जैसे ढपली मां

ममता के मटके को 
ममता के मनको से
हर पल,पल पल भरती माँ

 चूल्हा चिमटा,बर्तन,झाड़ू,लत्ते
धोती, कभी नही जैसे थकती माँ

पापड़ स्वाली भर भर परात बनाती मां, भरी दोपहरी में तंदूर पर रोटी लगाती मां

दिवाली पर ईंटों के फर्श को रगड़ रगड़ लाल बनाती मां
भरी दोपहरी में भैंसों की गल पट्टी बनाती मां

बाजरे की खिचड़ी कूटती मां
लहुसन की चटनी बनाती मां
भरी बारिश ने खाट तले चूल्हे पर रोटी बनाती मां

गेहूं की बाल्टी तोलती मां
भैंसों का दूध बेचती मां
कभी पापा को कभी भैंसों को
ढूंढ कर लाती मां
भाई के पटियाला जाने पर
बांध मंडासा भाव विहल हो जाने वाली मां

सात शादियां 15 बच्चे
हर रस्म बखूबी निभाने वाली मां
देने लेने में बेस्ट कर जाने वाली मां
इतनी बीमार होने पर भी कभी ना उफ्फ करने वाली हिम्मती मां
विषम परिस्थिति में भी कभी ना घबराने वाली मां
अपनी इच्छाशक्ति और जिजीविषा से सुपरिणामा लाने वाली मां
संकल्प को सिद्धि से मिलाने वाली मां
कर्म की कावड़ में सतत प्रयासों का जल भरने वाली मां
उच्चारण नहीं आचरण में लाने वाली मां

फंदा फंदा जाने कितने ही स्वेटर 
बुनती मां
हर नाते में ताल मेल बिठाने वाली मां
हर चुनौती और संघर्ष का सामना कर बच्चों का जीवन सफल बनाने वाली मां जीवन के रंगमंच से भले ही चली गई हो पर जेहन से ना तो कभी गई ना ही कभी जेहन से जाएगी जिंदगी के हर मोड़ पर आती है याद और यूं ही याद आएगी

सहजता का पर्याय मां
जीवन में सबसे अच्छी राय मां
धरा सा धीरज उड़ान गगन सी
जीवन का मूलमंत्र बनाने वाली मां

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