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आईना ही गर होगा धुंधला(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

आईना ही गर होगा धुंधला
फिर अक्स साफ कैसे नजर आएगा???????

ओ मेरे परवरदिगार!
ये मलिन मनों से 
धुंध कुहासे कौन हटाएगा???????

पूर्वाग्रह से ग्रस्त लोगों को
कैसे कोई समझाएगा?????????

चित होगा जब निर्मल पावन
फिर धुंधला मंजर भी साफ नजर आयेगा

नजर से नहीं 
अक्सर नजरिए से देखते हैं लोग 
सत्य ये कैसे समझ में आएगा?????

*हनुमान तो नहीं हूं जो चित चीर कर दिखा दूं
भाव होगा चित में तो राम स्वयं ही नजर आएगा*

किसी को समझने के लिए भी एक समझ को करना पड़ता है विकसित
ये सबकी समझ को कब समझ में आएगा??????????

*जिस चश्मे से देखेंगे दर्पण
वैसा ही अक्स नजर तुम्हे आयेगा*

शब्दों की नहीं,
गर जानते तुम भावों की भाषा,
हर भाव अपनी कहानी तुम्हें सुनाएगा

ये बोला वो बोला,कब बोला,किसने बोला छोड़ो बेकार की बातों को,
उर्वरा चित सच में बंजर हो जाएगा

अपनी जिंदगी का रिमोट ना दो दूजे के हाथों में,
तुम्हें खुद ही सब समझ में आ जाएगा

ज्ञान भले ही ना हो मुझ को
पर राजनीति समझ नहीं आती
साहित्य बसता है रूह में मेरी
पीती हूं पानी इसका,रोटी भी हूं इसी की खाती

मेरी आंखों के दर्पण में
यही सत्य नजर तुम्हे आयेगा

मलिन मनों से हट जाएंगे 
जब धुंध कुहासे
मंजर साफ नजर तुम्हे आयेगा

कोई राग ना हो कोई द्वेष ना हो
कोई कष्ट ना हो कोई क्लेश ना हो
फिर धरा पर स्वर्ग उतर आएगा
अहम से वयम की जब चलेगी बयार
पूरा विश्व परिवार बन जाएगा

हम सबके हीं,सब हमारे हों
वसुधैव कुटुंब का भाव सर्वोपरि हो जाएगा

Comments

  1. बहुत ही सुन्दर रचना
    ये मलिन मनो से धुंध कुहासे कोन है
    हटाएगा.... तू कम मैं ज्यादा जैसे बुराई को मन से कौन हटाएगा...
    मिटेगा जब मन से घमंड रूपी मैल तब ही तो प्यार और इंसान का मोल समझ आएगा... परन्तु धरती के बंधु को कब ये समझ आएगा

    ReplyDelete
  2. … beautiful lines with deep meaning 👍

    ReplyDelete
  3. वाह वाह वाह....
    बहुत खूब लिखते हो.... हर अंश को कृति में साझा करते हो... इतना सब कुछ इतने सुंदर ढंग से प्रस्तुत कैसे करते हो.... निशब्द बना डाला मुझे तो...
    किसी को समझने के लिए भी एक समझ को करना पड़ता है विकसित
    ये सबकी समझ को कब समझ में आएगा????????


    ज्ञान भले ही ना हो मुझ को
    पर राजनीति समझ नहीं आती
    साहित्य बसता है रूह में मेरी
    पीती हूं पानी इसका,रोटी भी हूं इसी की खाती...


    बहुत ही सुन्दर आपके मन में न है बुराई अच्छाई ही अच्छाई बस इसमें है समाई तभी तो.. इतनी गहरी बात इतने भाव कृति में आए हजारों गुण है आपमें समाये



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