उठ लेखनी,चल कुछ ऐसा कदम उठाएंगे।
जहाँ जहाँ हुआ है अन्याय,लोगों को याद दिलाएंगे।।
द्वापर की द्रौपदी,सतयुग की सीता, कलयुग की दामिनी की कुछ कर के बातें सोई चेतना जगायेंगे।।
क्या गलती थी पांचाली की,जो पांच पतियों के होते हुए भी भरी सभा मे निर्लज्ज हुई।
क्या गलती थी पतिव्रता सिया की,जो निर्दोष होते हुए भी उसकी अग्निपरीक्षा हुई।
क्या गलती थी उस अबोध दामिनी की,जब मानवता भी शर्मसार हुई।
आज नही ये युगों युगों से संग नारी क ऐसा हीे होता आया है।
ऐसे जाने कितने किस्सों में,इतिहास ने खुद को दोहराया है।।
बहुत सो लिए,अब तो जागें,अब समय जागने का आया है।
सर्वे भवन्तु सुखिना, क्यों इस भाव को जग ने नही अपनाया है????
Comments
Post a Comment