एक अद्भुत सी कशिश लिए हुए है कान्हा का मोहक किरदार।
कभी ग्वाला,कभी वो रक्षक,कभी सारथी,कभी द्वारकाधीश का श्रृंगार।
कभी बने सहायक पंचाली के,किया चीर बढ़ा समर्पण स्वीकार।
कभी मित्र सुदामा के बने बड़े प्रेम से,किया मन से मित्र का स्वागत सत्कार।
कभी खाई भाजी विदुर के घर मे,जग से हटाया पापाचार।
कभी दिया ज्ञान गीता का अर्जुन को,समझाया जग को कर्म का सार।
कभी शांति दूत बने पांडवों के,दिया संदेश विश्व को,होती नही धर्म की हार।
साधुओं की रक्षा के लिए,धर्म को हानि न पहुंचे,इसके लिए,नारी की रक्षा के लिए,कान्हा ही तो थे सदाबहार।
राधा कान्हा के प्रेम का आज भी ज़र्रे ज़र्रे में कर लो दीदार।
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