Skip to main content

सच में (( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

सच में रेगिस्तान हरे हो जाते हैं
जब ये भाई बहनों के घर आते हैं

एक गिला है इनके केवल
कई बार आने में देर लगाते हैं

सबसे लंबा सबसे प्यारा साथ है
ये भाई बहन का,
ये क्यों भूले जाते हैं?????
ध्यान से देखो तो दोनों में
 अक्स मात पिता के नजर आते हैं

एक ही परिवेश एक सी परवरिश
 रास्ते बाद में अलग अलग हो जाते हैं
एक ही आंगन एक ही मात पिता
 कर्म और भाग्य एक सा नहीं पाते हैं

एक बात बस रहे ध्यान में
जब संवाद खत्म हो जाते हैं
फिर संबंध पड़े सुस्ताते हैं
स्नेह,संवाद,सौहार्द का नाता है ये
क्यों मुलाकातों से इसे हम पोषित नहीं किए जाते हैं????
सच में रेगिस्तान हरे हो जाते हैं 
जब ये भाई बहनों के घर आते हैं

लम्हा लम्हा साथ निभाने वाले
एक मोड़ पर अलग हो जाते है 
समय की कैसी चलती है पुरवाई
एक दूजे के मेहमान हो जाते हैं
एक ही परिवार के होते दोनों
पर समय संग नए सदस्य जुड़ जाते हैं
नयों के जुड़ने से ये रिश्ते पुराने
क्यों धुंधले हो जाते हैं???
जब जिंदगी का परिचय हो रहा होता है अनुभूतियों से
 तब से तो संग संग चले आते है 
हर संज्ञा,सर्वनाम,विशेषण का बोध वे संग संग तो किए जाते हैं
जिंदगी के एक मोड़ पर मात तात तो चले जाते हैं
फिर भाई से ही तो सजता है पीहर
ऐसे भाई बहन के नाते हैं

आ जाती है उसी दिन ये राखी
जब भाई बहन कभी भी  कहीं पर भी मिल जाते हैं
ये भाई दूज ये रक्षा बंधन, पर्व भाव यही लिए आते हैं
ये भात,ये कोथली ये सिंधारे ये बस प्रेम परवाह ही तो दिखाते हैं
वरना आज के दौर में मिठाई कहां भले हम खाते हैं

कुछ लेने नहीं आती ये बहनें
सारे भाई ये समझ नहीं पाते है 
आती हैं लेने तो वे पल पुराने
जो बहना की मधुर स्मृति बन जाते हैं
सच में रेगिस्तान हरे हो जाते हैं
जब ये भाई बहनों के घर आते हैं 

ऊपर वाला बनाता है भाई बहन का नाता,इसे हम चुन नहीं पाते हैं
पति पत्नी,मित्रों को चुनते हैं हम
समय संग वही प्राथमिक हो जाते हैं

निस्वार्थ का स्नेह भरा है ये नाता
मिलें या ना मिलें फिर भी भला एक दूजे का सोचे जाते हैं
जगह की दूरी हो बेशक पर दिल की दूरी ये कभी नहीं बनाते हैं
होती है परेशानी गर एक किसी को,
नयन दूजे के सजल हो जाते हैं
लबों से भले ही कहते ना हों,
पर स्नेह ताउम्र किए जाते हैं
सच में रेगिस्तान हरे हो जाते हैं
जब ये भाई बहनों के घर आते हैं








Comments

  1. अत्यंत ही दिल को छूने वाली कृति.....
    आप इतने अच्छे भाव कहां से लाते हो. पढ़ने वाले की आंखे पल भर में ही नम हो जाती है.. आपको हर बात कृति में उतारनी आती है.....
    आप भाव में और भाव आप मे दोनो मेल ये मिलाती है हर स्मृति पंक्ति में जो समाती है
    "स्मृतियों के सुप्त ज्वालामुखी फिर सक्रिय हो जाते हैं "
    सबसे सुंदर पंक्ति

    भाई बहन या बहन भाई के घर जब आती है तब सच में घर में उजियारे से छा जाते हैं आंगन बहुत महकाते है
    भाई बहन का नाता ईश्वर के बनाए सबसे सुंदर नाते है ...

    आपकी पंक्ति कृति पढ़ कर हर त्यौहार सहज हो जाते हैं!!👍🌹

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

वही मित्र है((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कह सकें हम जिनसे बातें दिल की, वही मित्र है। जो हमारे गुण और अवगुण दोनों से ही परिचित होते हैं, वही मित्र हैं। जहां औपचारिकता की कोई जरूरत नहीं होती,वहां मित्र हैं।। जाति, धर्म, रंगभेद, प्रांत, शहर,देश,आयु,हर सरहद से जो पार खड़े हैं वही मित्र हैं।। *कुछ कर दरगुजर कुछ कर दरकिनार* यही होता है सच्ची मित्रता का आधार।। मान है मित्रता,और है मनुहार। स्नेह है मित्रता,और है सच्चा दुलार। नाता नहीं बेशक ये खून का, पर है मित्रता अपनेपन का सार।। छोटी छोटी बातों का मित्र कभी बुरा नहीं मानते। क्योंकि कैसा है मित्र उनका, ये बखूबी हैं जानते।। मित्रता जरूरी नहीं एक जैसे व्यक्तित्व के लोगों में ही हो, कान्हा और सुदामा की मित्रता इसका सटीक उदाहरण है। राम और सुग्रीव की मित्रता भी विचारणीय है।। हर भाव जिससे हम साझा कर सकें और मन यह ना सोचें कि यह बताने से मित्र क्या सोचेगा?? वही मित्र है।। बाज़ औकात, मित्र हमारे भविष्य के बारे में भी हम से बेहतर जान लेते हैं। सबसे पहली मित्र,सबसे प्यारी मित्र मां होती है,किसी भी सच्चे और गहरे नाते की पहली शर्त मित्र होना है।। मित्र मजाक ज़रूर करते हैं,परंतु कटाक...

सकल पदार्थ हैं जग माहि, करमहीन नर पावत माहि।।,(thought by Sneh premchand)

सकल पदारथ हैं जग मांहि,कर्महीन नर पावत नाहि।। स--ब कुछ है इस जग में,कर्मों के चश्मे से कर लो दीदार। क--ल कभी नही आता जीवन में, आज अभी से कर्म करना करो स्वीकार। ल--गता सबको अच्छा इस जग में करना आराम है। प--र क्या मिलता है कर्महीनता से,अकर्मण्यता एक झूठा विश्राम है। दा--ता देना हमको ऐसी शक्ति, र--म जाए कर्म नस नस मे हमारी,हों हमको हिम्मत के दीदार। थ-कें न कभी,रुके न कभी,हो दाता के शुक्रगुजार। हैं--बुलंद हौंसले,फिर क्या डरना किसी भी आंधी से, ज--नम नही होता ज़िन्दगी में बार बार। ग--रिमा बनी रहती है कर्मठ लोगों की, मा--नासिक बल कर देता है उद्धार। हि--माल्य सी ताकत होती है कर्मठ लोगों में, क--भी हार के नहीं होते हैं दीदार। र--ब भी देता है साथ सदा उन लोगों का, म--रुधर में शीतल जल की आ जाती है फुहार। ही--न भावना नही रहती कर्मठ लोगों में, न--हीं असफलता के उन्हें होते दीदार। न--र,नारी लगते हैं सुंदर श्रम की चादर ओढ़े, र--हमत खुदा की सदैव उनको मिलती है उनको उपहार। पा--लेता है मंज़िल कर्म का राही, व--श में हो जाता है उसके संसार। त--प,तप सोना बनता है ज्यूँ कुंदन, ना--द कर्म के से गुंजित होता है मधुर व...

बुआ भतीजी