अधरों पर कान्हा की बांसुरी देख कर,
गोपी को ईर्ष्या हो आयी।।।।।।।।।
ये कैसी सौत है मेरी बाँसुरिया,
प्रीत तो कान्हा से मैंने लगाई।।।।।
माखनचोर नही वो तो,
निश्चित ही हैं चितचोर।
चुराया है जाने कितनों का दिल उसने
ऐसे हैं मेरे मोहन,नन्दकिशोर।
सुन मोहन की मोहक बांसुरी
राधा नंगे पावँ दौड़ी चली आती थी।
ज़र्रे ज़र्रे में राधा को मोहन की
मदहोश करने वाली बांसुरी बेसुध बनाती थी।
कौन शहर से आया ये जादूगर
ब्रज की हर गोपी गुनगुनाती थी।।।
Comments
Post a Comment