Skip to main content

युग बदले पर सोच ना बदली(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

 युग बदले पर सोच ना बदली,
करे द्रौपदी चीख पुकार
मानव रूप में देखो दानव 
 कर रहे बेधड़क व्याभिचार

कहीं सुरक्षित नहीं है नारी,
भेड़िए घात लगा, कर रहे प्रहार
मानव जब बन जाता है दानव
करता मानवता को शर्मसार
युग बदले पर सोच ना बदली
 करे द्रौपदी चीख पुकार.......

जब लज्जा का एक दुपट्टा
 सिर से ऐसे खींचा जाए

जब नारी की अस्मत को
 यूं मिट्टी में रौंदा जाए

क्यों नहीं धरा गगन डोले 
क्यों मौन रहा सारा संसार???

युग बदले पर सोच ना बदली,
करे द्रौपदी चीख पुकार
कभी दिल्ली कभी मणिपुर दहला
अब कलकता भी हुआ शुमार
तन घायल और मन आहत
करे कायनात जैसे हाहाकार

अपराध की सजा हो इतनी भयंकर
सोचे अपराधी जो बार बार

जब कोई द्रौपदी करे पुकार
 तो फिर कोई कान्हा क्यों ना आए

तन मन दोनों होते हों जब घायल
क्यों कोई मरहम नहीं लगाए

रक्षक ही जब बन जाएं भक्षक
न्याय का हिल जाता आधार

युग बदले पर सोच ना बदली
करे द्रौपदी चीख पुकार

जब कोई घटना ऐसी हो तो
ह्रदय क्रोध से भर जाए

जब एक नारी की ऐसी हालत
जीते जी वो मर जाए

जब भरी भीड़ में इज्ज़त को
 सिक्के  की तरह उछाला जाए

जब निर्वस्त्र कर कुल की मर्यादा
सड़कों पर कोई ले आए

जब नैन मिलाते ही दर्पण से
नैन नीर से भर जाएं

ऐसे छुए कोई निर्ममता से उसको
कि हर छुअन ने फिर चित घबराए

सृजन करती है जो सृष्टि का
उसे भोग्या समझने से कर दो इंकार
सम्मान नहीं कर सकते तो 
बेइजत करने का नहीं तुम्हें अधिकार
हैवानियत,दरिंदगी ने किया
 ऐसा तांडव
 जिंदगी मौत से गई फिर हार
युग बदले पर सोच ना बदली
करे द्रौपदी चीख पुकार

जब बाहरी तन को छू कर कोई
मन को भी छलनी कर जाए
जब नारी का अस्तित्व मात्र
एक वस्तु बन की रह जाए
जब कोई द्रौपदी करे पुकार तो
फिर कोई कान्हा क्यों आने से करे इनकार
युग बदले पर सोच ना बदली
करे द्रौपदी चीख पुकार

जब पावन तन पर 
कोई मैली नजरों से प्रहार करे
जब जानवरों की भांति कोई
नारी संग व्यवहार करे
ऐसा होने पर भी कोई जब
भीष्म मौन साधने लग जाए
तो कहो बेचारी नारी जग के
किस कोने में जाए

तब तक हार कर वो तुम्हें बुलाती है कान्हा
कलयुग की द्रौपदी सच में इंसाफ चाहती है  कान्हा
 क्यों नहीं आते  किसी द्रौपदी की लाज बचाने तुम अब कान्हा????
युग बदले हैं पर सोच ना बदली
सत्य से अवगत हो तुम कान्हा

व्यथित मन की आह से ही तो
जलजले प्रकृति में आते हैं
यूं हीं तो नहीं ये फटते हैं बादल
यूं हीं नहीं तूफान सुनामी आते हैं
जो जाने कितनी ही 
जिंदगियां बचा लेती
उसी की जिंदगी को
 कर दिया तार तार
चीख, रूदन,बेबसी,चीत्कार
क्यों नारी करे इसे अंगीकार
युग बदले पर सोच ना बदली
शिक्षा भाल पर ना सोहे संस्कार

Comments

  1. अरे भाई आप क्या लिखते हो मैम सच में मुझे तो निशब्द बना डाला मैम मेरी नज़र में तो इस कुरीति और आज के समय में हो रही नारी संग ये घिनौने कर्म का इस कृति में दार्शनिक वर्णन है


    सच में रूह कांप उठी पढ़ कर

    भेड़िए घात लगा, कर रहे प्रहार
    मानव जब बन जाता है दानव
    करता मानवता को शर्मसार



    युग बदले पर सोच ना बदली,
    करे द्रौपदी चीख पुकार
    कभी दिल्ली कभी मणिपुर दहला
    अब कलकता भी हुआ शुमार
    तन घायल और मन आहत
    करे कायनात जैसे हाहाकार

    अपराध की सजा हो इतनी भयंकर
    सोचे अपराधी जो बार बार


    हर एक एक बात को बहुत ही अच्छे से कविता में है रमाया बताया आज के युग में कितना गंध है छाया
    क्यों करे ये दुष्ट निर्वस्त्र लड़की की काया
    इनके भीतर सच में दानव है आया
    जानवर बना है इस युग में हर पुरूष पराया




    मेरी नजरो से देखू तो इस समाज में हो रही सामाजिक कुरीतियां के संबंध में जो भी कविता लिखी जाए उसमे से प्रथम स्थान पूर्ण भारत में आपकी कविता का आए

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

वही मित्र है((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कह सकें हम जिनसे बातें दिल की, वही मित्र है। जो हमारे गुण और अवगुण दोनों से ही परिचित होते हैं, वही मित्र हैं। जहां औपचारिकता की कोई जरूरत नहीं होती,वहां मित्र हैं।। जाति, धर्म, रंगभेद, प्रांत, शहर,देश,आयु,हर सरहद से जो पार खड़े हैं वही मित्र हैं।। *कुछ कर दरगुजर कुछ कर दरकिनार* यही होता है सच्ची मित्रता का आधार।। मान है मित्रता,और है मनुहार। स्नेह है मित्रता,और है सच्चा दुलार। नाता नहीं बेशक ये खून का, पर है मित्रता अपनेपन का सार।। छोटी छोटी बातों का मित्र कभी बुरा नहीं मानते। क्योंकि कैसा है मित्र उनका, ये बखूबी हैं जानते।। मित्रता जरूरी नहीं एक जैसे व्यक्तित्व के लोगों में ही हो, कान्हा और सुदामा की मित्रता इसका सटीक उदाहरण है। राम और सुग्रीव की मित्रता भी विचारणीय है।। हर भाव जिससे हम साझा कर सकें और मन यह ना सोचें कि यह बताने से मित्र क्या सोचेगा?? वही मित्र है।। बाज़ औकात, मित्र हमारे भविष्य के बारे में भी हम से बेहतर जान लेते हैं। सबसे पहली मित्र,सबसे प्यारी मित्र मां होती है,किसी भी सच्चे और गहरे नाते की पहली शर्त मित्र होना है।। मित्र मजाक ज़रूर करते हैं,परंतु कटाक

सकल पदार्थ हैं जग माहि, करमहीन नर पावत माहि।।,(thought by Sneh premchand)

सकल पदारथ हैं जग मांहि,कर्महीन नर पावत नाहि।। स--ब कुछ है इस जग में,कर्मों के चश्मे से कर लो दीदार। क--ल कभी नही आता जीवन में, आज अभी से कर्म करना करो स्वीकार। ल--गता सबको अच्छा इस जग में करना आराम है। प--र क्या मिलता है कर्महीनता से,अकर्मण्यता एक झूठा विश्राम है। दा--ता देना हमको ऐसी शक्ति, र--म जाए कर्म नस नस मे हमारी,हों हमको हिम्मत के दीदार। थ-कें न कभी,रुके न कभी,हो दाता के शुक्रगुजार। हैं--बुलंद हौंसले,फिर क्या डरना किसी भी आंधी से, ज--नम नही होता ज़िन्दगी में बार बार। ग--रिमा बनी रहती है कर्मठ लोगों की, मा--नासिक बल कर देता है उद्धार। हि--माल्य सी ताकत होती है कर्मठ लोगों में, क--भी हार के नहीं होते हैं दीदार। र--ब भी देता है साथ सदा उन लोगों का, म--रुधर में शीतल जल की आ जाती है फुहार। ही--न भावना नही रहती कर्मठ लोगों में, न--हीं असफलता के उन्हें होते दीदार। न--र,नारी लगते हैं सुंदर श्रम की चादर ओढ़े, र--हमत खुदा की सदैव उनको मिलती है उनको उपहार। पा--लेता है मंज़िल कर्म का राही, व--श में हो जाता है उसके संसार। त--प,तप सोना बनता है ज्यूँ कुंदन, ना--द कर्म के से गुंजित होता है मधुर व

अकाल मृत्यु हरनम सर्व व्याधि विनाश नम Thought on धनतेरस by Sneh premchand

"अकाल मृत्यु हरणम सर्व व्याधि विनाशनम" अकाल मृत्यु न हो, सब रोग मिटें, इसी भाव से ओतप्रोत है धनतेरस का पावन त्यौहार। आज धनतेरस है,धन्वंतरि त्रयोदशी, धन्वंतरि जयंती, करे आरोग्य मानवता का श्रृंगार।। आज ही के दिन सागर मंथन से प्रकट हुए थे धन्वंतरि भगवान। आयुर्वेद के जनक हैं जो,कम हैं, करें, जितने भी गुणगान।। प्राचीन और पौराणिक डॉक्टर्स दिवस है आज, धनतेरस के महत्व को नहीं सकता कोई भी नकार। "अकाल मृत्यु हरनम, सर्व व्याधि विनाशनम" इसी भाव से ओत प्रोत है धनतेरस का पावन त्यौहार।। करे दीपदान जो आज के दिन,नहीं होती अकाल मृत्यु,होती दूर हर व्याधि रोग और हर बीमारी के आसार।। आज धनतेरस है,धन्वंतरि त्रयोदशी,धन्वंतरि जयंती,करे आरोग्य मानवता का श्रृंगार।।।             स्नेह प्रेमचंद