सातों सुर पड़ जाते है फ़ीके,
जब कोई माँ लोरी गाती हैं।
माँ के आँचल में है वो पूर्णता,
जहां ममता डेरा जमाती है।।
मा बना दे जो भी रोटी,
वो प्रसाद बन जाती है।
माँ की हर चितवन होती है चारु,
मा खुशियाँ ही खुशियाँ सहेज कर लाती है।।
शक्ल देख हरारत पहचान लेती है मां
हमसे ही हमारा परिचय करवाती है
आ जाए गर कोई परेशानी
मां झट समाधान बन जाती है
जीवन के इस चक्रव्यूह में
मां निकास द्वार बन जाती है
हमारा जीवन ना बने अग्नि पथ
मां सहजता की राह दिखाती है
सातों सुर पड जाते हैं फीके
जब कोई मां लोरी गाती है
रीति है मां रिवाज है मां
शिक्षा है मां संस्कार है मां
उत्सव है मां उल्लास है मां
कर्म है मां प्रयास है मां
जीवन के तपते मरुधर में हरियाली है मां
और अधिक नहीं आता कहना
पर्वों में जैसे दिवाली है मां
मां प्रीत मां स्नेह सिंधु
मां हर घाव पर मरहम बन जाती है
जब सब पीछे हट जाते हैं
मां आगे बढ़ कर आती है
सातों सुर पड जाते हैं फीके
जब कोई मां लोरी गाती है
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