Skip to main content

पूछ न लागी जब मेरी सखियां(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

पूछन लागी मोसे सखियां,
बोल सखी री!
राखी पर तूँ क्या पीहर से लाई है?
आज बता दे बेबाक सहेली,
क्यों कहने से हिच किचाई है??

जो लाई हूँ वो इस तन की आंखों से नही दिखेगा,
कच्चे धागे पर पक्के बंधन के पर्व का पुष्प इस हिवड़े में ताउम्र खिलेगा
मैं सहजता के पौधे से उमंग उल्लास के पुष्प लाई हूं

मात पिता ने  जिस प्रेम अंकुर को लगा कर जग से लेली थी विदाई,
उसे सींच कर स्नेह जल और प्रेम खाद से,
आज कितनी ही कली हैं पुष्प बन आई।।
मैं अपने झीने झोले में मज़बूत से बन्धन के पल चुरा कर लाई हूँ,
मैं मस्तक पर विश्वास की रोली,अपनत्व के चावल खिला कर  आई हूं,
मैं मीठे से कर के शगुन सबके जीवन मे मिठास भर आईं हूँ,
मैं भतीजे भतीजी में भाई बहन के हुनियारे महसूस कर आई हूं
मैं माँ के अधरों की मुस्कान भाभी बहनों के लबों पर देख कर आई हूँ,
मैं मां की परंपरा को सहेज फिर घर वापस आई हूं
यही लेने गई थी मैं, 
ये झोले भर भर लाई हूँ,
मैं लंबी उम्र और खुशहाल से जीवन की सबको दुआ दे आई हूँ,
हर बार की तरह इस राखी पर भी,
मैं इन सब से मालामाल हो आई हूँ,
मात पिता की सौंधी सी महक,
दिल मे बसा कर लाई हूँ,
भाई बहनों में गई थी देखने अक्स मात पिता का,
यादों के आईने से वक़्त की धूल हटा कर आई हूं,
ऐसे तोहफों को कैसे दिखलाऊँ,
ऐसी कोई ऐनक नही बन पाई है,
तूँ पढ़ना जानती हो गर मेरे दिल की पाती, तो पढ़ ले,मेरा तो धुंधला हुआ मंज़र,
मुझे शब्दलिपि नही बस भावलिपि ही नज़र आई है।।

Comments

Popular posts from this blog

वही मित्र है((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कह सकें हम जिनसे बातें दिल की, वही मित्र है। जो हमारे गुण और अवगुण दोनों से ही परिचित होते हैं, वही मित्र हैं। जहां औपचारिकता की कोई जरूरत नहीं होती,वहां मित्र हैं।। जाति, धर्म, रंगभेद, प्रांत, शहर,देश,आयु,हर सरहद से जो पार खड़े हैं वही मित्र हैं।। *कुछ कर दरगुजर कुछ कर दरकिनार* यही होता है सच्ची मित्रता का आधार।। मान है मित्रता,और है मनुहार। स्नेह है मित्रता,और है सच्चा दुलार। नाता नहीं बेशक ये खून का, पर है मित्रता अपनेपन का सार।। छोटी छोटी बातों का मित्र कभी बुरा नहीं मानते। क्योंकि कैसा है मित्र उनका, ये बखूबी हैं जानते।। मित्रता जरूरी नहीं एक जैसे व्यक्तित्व के लोगों में ही हो, कान्हा और सुदामा की मित्रता इसका सटीक उदाहरण है। राम और सुग्रीव की मित्रता भी विचारणीय है।। हर भाव जिससे हम साझा कर सकें और मन यह ना सोचें कि यह बताने से मित्र क्या सोचेगा?? वही मित्र है।। बाज़ औकात, मित्र हमारे भविष्य के बारे में भी हम से बेहतर जान लेते हैं। सबसे पहली मित्र,सबसे प्यारी मित्र मां होती है,किसी भी सच्चे और गहरे नाते की पहली शर्त मित्र होना है।। मित्र मजाक ज़रूर करते हैं,परंतु कटाक...

बुआ भतीजी

सकल पदार्थ हैं जग माहि, करमहीन नर पावत माहि।।,(thought by Sneh premchand)

सकल पदारथ हैं जग मांहि,कर्महीन नर पावत नाहि।। स--ब कुछ है इस जग में,कर्मों के चश्मे से कर लो दीदार। क--ल कभी नही आता जीवन में, आज अभी से कर्म करना करो स्वीकार। ल--गता सबको अच्छा इस जग में करना आराम है। प--र क्या मिलता है कर्महीनता से,अकर्मण्यता एक झूठा विश्राम है। दा--ता देना हमको ऐसी शक्ति, र--म जाए कर्म नस नस मे हमारी,हों हमको हिम्मत के दीदार। थ-कें न कभी,रुके न कभी,हो दाता के शुक्रगुजार। हैं--बुलंद हौंसले,फिर क्या डरना किसी भी आंधी से, ज--नम नही होता ज़िन्दगी में बार बार। ग--रिमा बनी रहती है कर्मठ लोगों की, मा--नासिक बल कर देता है उद्धार। हि--माल्य सी ताकत होती है कर्मठ लोगों में, क--भी हार के नहीं होते हैं दीदार। र--ब भी देता है साथ सदा उन लोगों का, म--रुधर में शीतल जल की आ जाती है फुहार। ही--न भावना नही रहती कर्मठ लोगों में, न--हीं असफलता के उन्हें होते दीदार। न--र,नारी लगते हैं सुंदर श्रम की चादर ओढ़े, र--हमत खुदा की सदैव उनको मिलती है उनको उपहार। पा--लेता है मंज़िल कर्म का राही, व--श में हो जाता है उसके संसार। त--प,तप सोना बनता है ज्यूँ कुंदन, ना--द कर्म के से गुंजित होता है मधुर व...