Skip to main content

फिर से आ जाओ ना माधव(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

फिर से आ जाओ ना माधव
फिर कोई दुष्ट दुशासन आया है

फिर किसी द्रौपदी का मान हरा है
तन मन उद्वेलित हो आया है

 उजियारे ने आने से कर दी मनाही,घना अंधेरा छाया है

भले ही तान सुनाओ ना किसी बांसुरी की,
वक्त सुदर्शन चक्र चलाने का आया है

फिर से आ जाओ ना माधव
फिर किसी कंस ने आतंक मचाया है

कर दो दमन बुराई का अब
सिर पर पानी चढ़ आया है

फिर से आ जाओ ना माधव
फिर कोई नाग कालिया आया है
डस  रहा है जो पूरी मानवता को,
 विषैला घना अंधेरा छाया है

एक नहीं जाने कितने ही अभिमन्यु फंसे हैं चकव्यूह में,
आकर माधव उन्हें राह दिखाओ 

भूल गए हैं जो गीता ज्ञान लोग,
आप आकर फिर से दोहराओ

भटक गए लोगों को सही राह पर लाने का वक्त अब आया है
फिर से आ जाओ ना माधव
फिर कोई दुष्ट  दुशासन आया है

जब जब होती है हानि धर्म की
ले अवतार तूं आया है
धर्म की स्थापना के लिए,
साधुओं की रक्षा के लिए
कहो कौन सा रूप तुझे भाया है??

सृष्टि को रचने वाली ही नहीं सुरक्षित अब,
मन खौफजदा हो आया है
भीष्म मौन सा साधा है जिसने,
शर शैया को ही बिछौना बनाया है

आहें,बद दुआ,चीख पुकार
सुनने से कैसे करोगे माधव इंकार
सबको निर्भय कर दो माधव
आए ना चित को अब तो करार
एक चीस सी उठती है सीने में
एक लहर दर्द की,सीने में गुब्बार
मत करो माफ 99 गलती किसी शिशुपाल की,
एक ही गलती पर समय चक्र चलाने का आया है

शब्द मौन हैं भाव हैं घायल
अवरुद्ध कंठ में शोर समाया है
हटा दो मलिन मनों से धुंध कुहासे
समय ये ऐसा आया है
जो जिंदगी दे सकती थी जाने कितनों को ही,
उसकी जिंदगी को किसी वहशी दरिंदे ने हराया है
फिर हो ना पुनरावृति ऐसे अपराधों की,इसलिए तुम्हे बुलाया है
फिर से आ जाओ ना माधव,
फिर कोई दुष्ट दुशासन आया है

फिर पथभ्रष्ट हुआ है कोई दुर्योधन
मोल रिश्तों का जिसे समझ नहीं आया है
राज पाठ और धन संपत्ति को
जिसने प्राथमिक बनाया है

दे दो गीता का ज्ञान फिर से,
मानव लगता डगमगाया है
हरो तमस,लाओ उजियारे
जन जन ने तुम्हें बुलाया है

फिर से *शांति दूत* बनो माधव
बुराई का कर के खात्मा अच्छाई स्थापित करने का समय आया है

पूजा भले ही ना करो नारी की,
पर स्नेह,सम्मान,सुरक्षा पर तो अधिकार है उसका,
मेरी छोटी सी समझ को इतना 
समझ में आया है

फिर से आ जाओ ना माधव
फिर कोई दुष्ट दुशासन आया है
कितने ही शकुनी फैंकते हैं 
जाने कैसे कैसे पासे 
इन  पासों से बचने का वक्त अब आया है
महाभारत से इस चित को रामायण बना दो ना माधव
हर भाव लगता जैसे अकुलाया है

पाक रहे दामन सबका,
नारी ने तो सृष्टि को बनाया है
फिर से आ जाओ ना माधव
फिर किसी द्रौपदी ने तुम्हे बुलाया है



Comments

  1. क्या ही लिखूं मैं मेरा हर शब्द इस कृति के आगे फीका है ये कृति तो आज की मानवता को समझाने बड़ा ही खूब तरीका है


    सबसे अहम पंक्ति ही मेरी रूह छू गई
    फिर से आ जाओ ना माधव
    फिर कोई दुष्ट दुशासन आया है

    कितना घोर कलयुग इस समय छाया है फिर से आ जाओ ना माधव इन कुरीतियों से जो हमे अब बचा सके वो सिर्फ़ और सिर्फ़ आपका साया है


    पूजा भले ही ना करो नारी की,
    पर स्नेह,सम्मान,सुरक्षा पर तो अधिकार है उसका,
    मेरी छोटी सी समझ को इतना
    समझ में आया है

    और ये इतना जिसको भी समझ आए
    वही मनुष्य धरती पर भगवान के घर से आया है बाकी सब तो सिर्फ़ और सिर्फ़ दानवों का साया है

    जो जिंदगी दे सकती थी जाने कितनों को ही,
    उसकी जिंदगी को किसी वहशी दरिंदे ने हराया है
    फिर हो ना पुनरावृति ऐसे अपराधों की,इसलिए तुम्हे बुलाया है

    रूह छूने वाली पंक्तियां
    माधव तुम्हे हमने अब सच में है हृदय तल से बुलाया है बस अब नारी को जो इन दुष्टों से बचा सके वो सिर्फ़ और सिर्फ़ आपका साया है बिन आपके असुरक्षित नारी की काया है

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

वही मित्र है((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कह सकें हम जिनसे बातें दिल की, वही मित्र है। जो हमारे गुण और अवगुण दोनों से ही परिचित होते हैं, वही मित्र हैं। जहां औपचारिकता की कोई जरूरत नहीं होती,वहां मित्र हैं।। जाति, धर्म, रंगभेद, प्रांत, शहर,देश,आयु,हर सरहद से जो पार खड़े हैं वही मित्र हैं।। *कुछ कर दरगुजर कुछ कर दरकिनार* यही होता है सच्ची मित्रता का आधार।। मान है मित्रता,और है मनुहार। स्नेह है मित्रता,और है सच्चा दुलार। नाता नहीं बेशक ये खून का, पर है मित्रता अपनेपन का सार।। छोटी छोटी बातों का मित्र कभी बुरा नहीं मानते। क्योंकि कैसा है मित्र उनका, ये बखूबी हैं जानते।। मित्रता जरूरी नहीं एक जैसे व्यक्तित्व के लोगों में ही हो, कान्हा और सुदामा की मित्रता इसका सटीक उदाहरण है। राम और सुग्रीव की मित्रता भी विचारणीय है।। हर भाव जिससे हम साझा कर सकें और मन यह ना सोचें कि यह बताने से मित्र क्या सोचेगा?? वही मित्र है।। बाज़ औकात, मित्र हमारे भविष्य के बारे में भी हम से बेहतर जान लेते हैं। सबसे पहली मित्र,सबसे प्यारी मित्र मां होती है,किसी भी सच्चे और गहरे नाते की पहली शर्त मित्र होना है।। मित्र मजाक ज़रूर करते हैं,परंतु कटाक

सकल पदार्थ हैं जग माहि, करमहीन नर पावत माहि।।,(thought by Sneh premchand)

सकल पदारथ हैं जग मांहि,कर्महीन नर पावत नाहि।। स--ब कुछ है इस जग में,कर्मों के चश्मे से कर लो दीदार। क--ल कभी नही आता जीवन में, आज अभी से कर्म करना करो स्वीकार। ल--गता सबको अच्छा इस जग में करना आराम है। प--र क्या मिलता है कर्महीनता से,अकर्मण्यता एक झूठा विश्राम है। दा--ता देना हमको ऐसी शक्ति, र--म जाए कर्म नस नस मे हमारी,हों हमको हिम्मत के दीदार। थ-कें न कभी,रुके न कभी,हो दाता के शुक्रगुजार। हैं--बुलंद हौंसले,फिर क्या डरना किसी भी आंधी से, ज--नम नही होता ज़िन्दगी में बार बार। ग--रिमा बनी रहती है कर्मठ लोगों की, मा--नासिक बल कर देता है उद्धार। हि--माल्य सी ताकत होती है कर्मठ लोगों में, क--भी हार के नहीं होते हैं दीदार। र--ब भी देता है साथ सदा उन लोगों का, म--रुधर में शीतल जल की आ जाती है फुहार। ही--न भावना नही रहती कर्मठ लोगों में, न--हीं असफलता के उन्हें होते दीदार। न--र,नारी लगते हैं सुंदर श्रम की चादर ओढ़े, र--हमत खुदा की सदैव उनको मिलती है उनको उपहार। पा--लेता है मंज़िल कर्म का राही, व--श में हो जाता है उसके संसार। त--प,तप सोना बनता है ज्यूँ कुंदन, ना--द कर्म के से गुंजित होता है मधुर व

बुआ भतीजी