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हिंदी की व्यथा(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कल रात 13सितंबर सपने में मेरी मां हिन्दी से हुई मुलाकात
उदास चेहरा,बुझी बुझी सी आंखे देखकर पूछा मैंने,
बतलाओ ना मां क्या है बात???

कल तो 14 सितंबर है मां, 
कल का तो खास है दिन
 और खास है रात 
कल तो आपको
 अगणित विशेषणों की मिलेगी  अनुपम सौगात
दिन भर होंगे उत्सव आयोजन,
बड़ी बड़ी पदवी और महिमामंडन की मिलेगी सौगात
हर नेता अभिनेता करेगा बात तुम्हारी,करतल ध्वनि की चल पड़ेगी बारात

लंबी सी सांस खींच बोली हिंदी देखो एक दिन की महारानी बना कर नहीं बदल सकते हालात
मैं चाहती हूं भोर होते ही
 सब हिंदी में ही बोलें सुप्रभात
मैं तो नस नस में हूं तुम सबके,
जैसे सावन में होती बरसात
हर मां की लोरी में हूं मैं
हूं मैं दादी नानी की कहानी में
कहां नहीं हूं मैं??????
हूं हर दिल ए हिंदुस्तानी में

क्या पूरे साल में मेरे लिए
तुन्हे दिन एक ही मिला है??
मुझे बस आप लोगों से 
यही गिला है
अपने ही देश में मुझे 
आप लोगों ने बना दिया मेहमान
दुख होता है देख कर मेरे बारे में है बच्चों को कितना अल्प ज्ञान
79,89 को नहीं बोल पाते ताउम्र,
अंग्रेजी का ही करते हैं आह्वान
नई पीढ़ी को तो देखो जरा
आम बातें हिंदी में करने में भी
हिचकिचाते हैं
हिंदी को कर दिल से पराया,
अंग्रेजी को गले लगाते हैं
फिर सोचा नया दौर है
हर ओर अंग्रेजी का शोर है
लेकिन अपनी ही भाषा को भूल जाएं अपराध ये बड़ा घोर है
मैं तो आदित्य हूं साहित्य का
और आर्यावर्त का हूं अभिमान
और परिचय क्या दूं अपना???
मैं ही हूं राष्ट्र का गौरवगान
तुलसी की रामायण हूं मैं,
मैं हूं गीता का गौरव गान
कबीर के कालजई दोहे हूं मैं,
मैं ही मीरा,सूरदास और रसखान
बच्चन जी मधुशाला हूं मैं,
मैं ही सुभद्रा कुमारी चौहान

भावों की अभिव्यक्ति सरल है
हो गर निज भाषा का ज्ञान
मैं गंगोत्री के उद्गम से निकली गंगा सी,गंगासागर तक के सफर में
जाने कितनी ही भाषाओं को आत्मसात कर सरल सीधा सा
कर देती हूं अपना विज्ञान

सच कहूं तो मां की व्यथा सुन
मेरा मन बोझिल सा हो आया
इतने लंबे सफर के बाद भी
क्यों है हिंदी पर उपेक्षा का साया
फिर सोचा मां हिन्दी की पीर बंटा दूं
हिंदी की व्यथा को जन जन तक पहुंचा दूं
आओ हम सब मिल कर हिंदी को अपने चित में बसाए
स्नेह सम्मान की अधिकारी मां हिंदी है गण तंत्र दोनों की जिम्मेदारी, जन जन को समझाएं

मां,मातृभूमि और मातृभाषा
तीनों ही हैं सम्मान की पूरी हकदार
बहुत सो लिए,अब तो जागें
हिंदी भाषा को मिले उसके अधिकार
सरल,सहज,सरस,सुबोध है हिंदी
हृदय की भाषा,आसान है इसमें करना संचार

मन में पक्का संकल्प धारे हम
हिंदी को चहुं ओर फैलाएंगे
पूरे देश में हिंदी का हम परचम 
लहराएंगे
गर्व से बोलेंगे हम सुप्रभात शुभ संध्या शुभ रात्रि
हिंदी को उसका वांछित स्थान दिलाएंगे

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