*सच में दौर बदल जाते हैं
कल तक जो आंगन था हमारा
वहीं मेहमान से बन जाते हैं*
*जहां लड़ जाते थे छोटी सी बात पर
अब बड़ी बड़ी बातों पर भी चुप्पी
साधे जाते हैं*
पहले मैं पहले मैं कहने वाले
पहले आप पहले आप के शब्द दोहराते हैं
शब्द रहें अपनी मर्यादा में,
गरिमा नातों की बनाते हैं
सच में दौर बदल जाते हैं
कुछ भी कहने वाले भाई बहन
सरहद के दायरे में सिमट जाते हैं
सच में दौर बदल जाते हैं
समय संग दबंग से मात पिता
बेबस,थके से नजर आते हैं
लड़खड़ाने लगते हैं उनके कदम,
खोजी नज़रों से सहारा खोजे जाते हैं
*संवेदनाएं सो सी जाती हैं*
द्वार उनके अक्सर वे खटखटाते हैं
कल तक थे जो जीवन में प्राथमिक
जिंदगी के रंगमंच पर,
नेपथ्य के पीछे हौले से चले जाते हैं सच में दौर बदल जाते हैं
अतीत के दस्तावेज होते हैं ये चित्र पुराने,
धूमिल यादों को स्मृति पटल पर ले आते हैं
याद आ जाते हैं गुज़रे ज़माने,
अतीत के झोले से जब वर्तमान में
कुछ पल चुरा कर लाते है
सबसे सुंदर प्यारे पल लगते हैं वे,
जिन में मात पिता के अक्स नजर आते है
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