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Showing posts from November, 2024

मात पिता

*बच्चों पर कोई कष्ट हो तो मां बाप बिन पल गवाए दौड़े आते हैं* *मां बाप पर कोई कष्ट हो तो बच्चे अक्सर खामोश हो जाते हैं* *मां बाप बच्चों को दूसरे कमरे में छोड़ने को भी नहीं होते तैयार* *बच्चे भरी दुनिया में बड़ी उम्र में छोड़ उन्हें तन्हा अपने वतन में, परदेस को ही मान लेते हैं अपना संसार* *ये विधि का विधान नहीं ये बात है सिर्फ संस्कारों की* ,क्षण भंगुर से इस जीवन में क्या दरकार है विकारों की?? *मन के भीतर रावण है मन के भीतर राम किसको सुलाते किसको जगाते होते सबके अलग अलग हैं काम*

वही मित्र हैं

उपहार लेना भी अच्छा लगता है

वही मित्र कहलाते हैं

यही मित्रता की परिभाषा

परी

आसमान से एक परी

बच्चे संग मात पिता भी

कभी कभी

मित्रता एक सुखद अहसास

निरस्त नहीं

मित्र

कर्मों से भाग्य बदल डाला(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))