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विकास अधिकारी हो गर सोने सा(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

विकास अधिकारी हो गर सोने सा,
अभिकर्ता कुंदन सा बन जाता है

अभिकर्ता के भीतर छिपे हनुमान को,
विकास अधिकारी बाहर निकाल कर लाता है

नेतृत्व हो गर प्रभावी सा,
फिर सफल कार्य निष्पादन हो जाता है
पीछे नहीं रहता फिर अभिकर्ता,
बीमे के मोती गहरे पानी में से निकाल ले आता है

अभिकर्ता का सीधा संपर्क होता है पॉलिसीधारक से,अभिकर्ता के हर क्यों,कब,कैसे,कितने का उत्तर विकास अधिकारी बन जाता है

मार्गदर्शन करता है ऐसे,
जैसे पारस, पत्थर को भी सोना बनाता है

तराश देता है अभिकर्ता को ऐसा विकास अधिकारी,
फिर हर चुनौती का सामना अभिकर्ता कर जाता है

हर समस्या हो जाती है हल,
संकल्प सिद्धि से हाथ मिलाता है

गुरु राम कृष परमहंस हो तो,
शिष्य विवेकानंद बन जाता है
दोहन होता है सही दिशा में प्रतिभा का,गुणात्मक परिणाम खड़ा मुस्काता है

हमारे भीतर छिपी अथाह संभावनाओं को गुरु एक बेहतरीन अवसर बनाता है
मार्गदर्शन कर देता है ऐसा,
शिष्य खुद ही फिर अपने सफर को मंजिल तक ले जाता है

नजर से नहीं,नजरिए से सोचों तो
गुरु का स्थान गोबिंद से भी ऊपर आता है
परिकल्पना,प्रतिबद्धता,प्रयास की त्रिवेणी फिर शिष्य बखूबी बहाता है

सतत और अधिक से अधिक विकास करे जो अपना और अपने अभिकर्ता का,वही तो विकास अधिकारी कहलाता है
धरा सा धीरज उड़ान गगन सी,
विकास अधिकारी के जीवन का हिस्सा बन जाता है

उसके अभिकर्ताओं की टीम रहे सदा तत्पर,उनके भीतर छिपी चिंगारी को शोला बनाता है

निगम के दोनों सशक्त स्तंभ हैं
अभिकर्ता और विकास अधिकारी

संवाद और संबंध मधुर हों 
दोनों में तो
बेहतरीन परिणामों की आ जाती है बारी

त्वरित और त्रुटिरहित सेवा संग मुस्कान के देना उनका दायित्व बन जाता है
स्काई इज द लिमिट फिर यह वक्तव्य सार्थक सिद्ध हो जाता है
यूं हीं नहीं निगम ने हासिल की हैं बुलंदियां इतनी,
विकास अधिकारी संग अभिकर्ता का नाम भी इसमें शीर्ष पर आता है
नवीनीकरण द्वारा परिवर्तनशील दृष्टिकोण अपना कर विकास अधिकारी सफलता की सीढ़ी चढ़ जाता है

डिजिटल सेवाओं से खुद को रखे अपडेट अगर तभी अभिकर्ताओं को भी सजग की पाता है
आनंदा सीखे और सिखाए अपने अभिकर्ताओं को,
समय और पैसा फिर निगम का भी वह बचाता है
लक्ष्य निर्धारित कर गर सही दिशा में करे कर्म तो,सच में कीर्तिमान बन जाता है

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