कविता 1_नमन नमन हे नारी शक्ति तुझे नमन
नमन नमन हे नारीशक्ति,
नमन नमन तुझे बारम्बार
करुणा,विवेक,सौंदर्य की त्रिवेणी,
मानवता का अद्वितीय श्रृंगार।।
सृजन की मूरत,ममता की सूरत,
प्रेम ही जीवन का आधार
तमस में आलोक हो,
पुष्प में पराग हो,
हो शिक्षा तुम, हो तुम्ही संस्कार
उत्सव भी तुम हो,
उल्लास भी तुम हो,
हो तुम्ही नारी सारे रीति रिवाज
तुमसे ही बजता है
सृष्टि के हर कोने में,
जिजीविषा का सुंदर साज
मरियम,सीता,अनुसूया तू
तूं ही राधा,मीरा ,पांचाली
बहन,बेटी,पत्नी, मां हर किरदार में
तूने उत्तम चलाई कुदाली
घर को मंदिर बनाने वाली,
खुद गीले में रह कर बच्चों को
सूखे में सुलाने वाली,
हुआ नतमस्तक पूरा संसार
नमन नमन हे नारीशक्ति,
नमन नमन तुझे बारम्बार
सर्वत्र पांव पसारे तूने,
हर क्षेत्र को कर दिया आबाद
सीमित उपलब्ध संसाधनों में भी तूने,
कर्म का सदा बजाया शंखनाद
सबको लेकर साथ चली तुम,
निभाया सर्वोत्तम हर किरदार
संयम,संतोष,कर्मठता की त्रिवेणी,
मानवता का अद्भुत श्रृंगार।।
बेटी कभी नही होती पराई,
ये भी सार्थक करके दिखाया।
ताउम्र मात पिता को तूने,
अपने चित में प्रेम से बिठाया।।
तेरी प्रतिबद्धता, तेरे प्रयासों के आगे
जहान ये नतमस्तक हो आया।।
धन्य धन्य हे नारीशक्ति,
शमन कर देती हो सारे विकार।।
कोमल हो कमजोर नही,
तुझ से ही सजता है संसार।।
नमन नमन हे नारीशक्ति,
नमन नमन तुझे बारम्बार।।
सृष्टि की तुम धुरी हो नारी,
तुझ से बनता परिवार।
सामंजस्य,संतोष,सहभागिता की त्रिवेणी
मानवता का अदभुत श्रृंगार।।।
सहती भी हो,चुप रहती भी हो,
पर अन्याय तुझे नही स्वीकार।
हद से गुजर जाता है जब पानी,
चंडी का ले लेती हो अवतार।।
नमन नमन हे नारीशक्ति,
नमन नमन तुझे बारम्बार।
दया,विनम्रता,समृद्धि की देवी,
हो मानवता का अदभुत श्रृंगार।।
वात्सल्य का कल कल करता झरना,
आदि काल से कर रहा यही पुकार।
मां रूप में सर्वोत्तम है नारी,
है धरा पर ईश्वर का अवतार।।
जाने कहां से लाती है इतना संयम,
इतनी ममता और प्रेम,
स्तब्ध सा हो जाता है सारा संसार।।
पर्व,उत्सव,उल्लास हैं तुझ से,
है तुझ से ही दीवाली और होली।
जीवन का सतरंगी इंद्रधनुष तुम,
तुम से ही सजती है घर घर रंगोली।।
अल्फाजों में न भावों में है शक्ति इतनी,
जो सही से कर पाएं इज़हार।
तुझ सा जीवन में मिल ही नहीं सकता
कभी कोई गमगुसार।।
ईश्वर भी हो गया होगा हैरान कर रचना तेरी,
दैविक शक्ति का हो तुम अंबार।
नमन नमन हे नारी शक्ति,
नमन,नमन तुझे बारंबार।।
कविता _2 मां केवल मां नहीं होती है सम्पूर्ण संसार
केवल माँ नही होती,
माँ होती है हक़ और अधिकार
सहजता ,उल्लास,पर्व है माँ,
माँ जीवन को देती है संवार
जिजीविषा है माँ,उमंग है माँ,
एक माँ ही तो करती है इंतज़ार
हर रिश्ते से भारी पड़ता है माँ का रिश्ता,चाहे करो या न करो स्वीकार
पतंग है जीवन तो डोर है माँ,
लंबी मावस के बाद,
सबसे उजली भोर है माँ
शिक्षा है मां संस्कार है मां
सच में खुशी और अधिकार है मां
जीवन के तपते मरुधर में,
मां सबसे ठंडी सी छाया
खुशी हो या फिर हो कोई गम
मां का नाम जेहन में आया
नसीहत की पक्की वसीयत है मां
मां से ही पूर्ण होता परिवार
मां केवल मां ही नहीं होती
मां होती है हक और अधिकार
माँ है तो जाने का बैग भी
झट से हो जाता है तैयार
अब चिढ़ाता है किसी कोने में पड़ा हुआ,
नही होंगे कभी माँ के दीदार
मन में तो सदा बसी रहोगी माँ,
सच थी कितनी तुम समझदार
भांति भांति के मोतियों से बनाया माँ तूने
कितना अद्भुत कितना प्यारा
जीने का सहारा प्रेमहार
मां कहीं जाती नहीं है
रहती है सदा हमारे विचारों में
हर धूप छांव में आज भी आएगी नजर,
जरा झांक कर तो देखो मन के गलियारों में
स्नेह प्रेमचन्द
हिसार हरियाणा
+91 94605 13550
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