माँ के पास कुछ अधिक नहीं था
पर कभी कुछ कम नहीं था
अन्नपूर्णा थी
भंडार थी
सनेहमयी उदार थी
सिलाई थी स्वेटर थी
हर काम में परफ़ेक्ट थी
सक्षम थी समर्थ थी
डरपोक थी पर हिम्मती थी
कैंसर से बचती रही
कैंसर को ही भीतर पालती रही झेलती रही
मगर कभी हारी नहीं थकी नहीं
जीवन के संघर्ष हंस कर सहजता से पार करती रही
कैसा ख़ज़ाना था उसका बेशुमार
पवित्र और चरित्र वान
नायिका हमारे जीवन की सशक्त और गुणगान
अनपढ़ थी पर बुद्धि विवेक की खान
करूणामयी साधारण होते हुए भी असाधारण
धन्य हुई मैं ऐसी माँ पाकर
इच्छा यही कि काश एक प्रतिशत भी निभा पाऊँ
माँ बनकर माँ जैसा किरदार
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