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Poem on Zakir Hussain ये कौन गया है महफिल से??(( Sneh premchand))

ये कौन गया है महफिल से?????? 
जो लय,ताल,गति सब अनमने से हैं आज
स्तब्ध है संगीत, मौन हैं स्वर लहरियां,
उदास उदास हैं सारे साज़

वाद्य भी बहुत कुछ कह जाते हैं
भाव मात्र शब्दों के नहीं होते मोहताज
संगीत तो थेरेपी है ऐसी
संवार देती है जो हमारा कल और आज
सन्नाटे शोर मचा रहे हैं आज
एक और रतन खोया है हमने,
 चमका जो जग में बन हिंदुस्तान की आवाज

शास्त्रीय संगीत की गहराइयों पर दे गए दस्तक ऐसी,
पंखों को उनके मिली थी परवाज़
एक और कोहिनूर खो गया हिंदुस्तान संगीत जगत से,
अपूरणीय क्षति,दमदार व्यक्तित्व
पर सदा ही रहा हमे नाज
बुझ गई हिन्दुस्तानी तहजीब की रोशन मिसाल
गजब उनकी शख्शियत,हुनर उनका कमाल 

उस्ताद नहीं शागिर्द बने रहना सदा
पिता अल्लाह रक्खा ने सदा पुत्र को समझाया
कितना भी कर लो रियाज कम है हर मोड़ पर अनुभव ने है सिखाया

गंगा नदी की तरह,
गुरु में सदा ही बहता रहता है ज्ञान
यह शिष्य की योग्यता पर है निर्भर,
ले बन पाता है कितना विद्वान

कोई एक कप,कोई बाल्टी,कोई ट्रक
निकालता है
अपनी सोच सामर्थ्य का सबका अलग अलग विज्ञान
गुरु कभी शिष्य को कुछ नहीं सिखाता,कह गए जाकिर हुसैन 
किसी परिचय की मोहताज नहीं जिनकी पहचान
संगीत के प्रति प्रतिबद्धता थी ऐसी अनोखी उनकी,जैसे गीतम माधव का ज्ञान
यादें याद रह जाती हैं,
जीवन के मोड़ पर आती रहती हैं याद
ऐसा सा कुछ बन गया है रिवाज
ये कौन गया है महफिल से
सुर, लय,ताल सब अनमने से हैं आज

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