सच ही तो कहती है स्नेह लेखनी
*मां कंठ हम आवाज*
मां किन शब्दों में करूं तेरा शुक्रिया
मेरी शब्दावली में ढूंढे भी नहीं मिलते अल्फ़ाज़
11 स्वर और 33 व्यंजन कम हैं जो बताऊं मां तेरी महानता का मैं राज
मातृ ऋण से कभी उऋण नहीं हो सकते हम
मां ममता का सबसे मधुर सा साज
अपने वजूद की स्याही से हमारे अस्तित्व को लिखने वाली
क्या लिखूं तेरे बारे में तूने तो मुझे ही लिखने का कर डाला है काज
सौ बात की एक बात है
*मां कंठ हम आवाज*
फिर भी मां का हिवडा दुखाने से हम नहीं आते हैं बाज
मां हमारी खुशियों के लिए अपने दर्दों को बना कर रखती है राज
खामोशी की आवाज भी सुन लेती है मां,
मां से ही मिलते शिक्षा,संस्कार,रीति रिवाज
सच ही तो कहती है स्नेह लेखनी
*मां कंठ हम आवाज*
सपनों को हकीकत में
बदल देती है मां
मां ही पंखों को देती परवाज़
मैने भगवान को तो नहीं देखा,
पर जब जब देखा अपनी मां को दिल से निकली यही आवाज
*मां ईश्वर का पर्याय है जग में*
मां है तो फिर नहीं गिरती कोई गाज
लाखों की कमी पूरी कर देती है एक मां,
पर एक मां की कमी लाख भी पूरी नहीं कर पाते,
मां से सुंदर हमारा कल और आज
सच ही तो कहती है स्नेह लेखनी
*मां कंठ हम आवाज*
मातृऋण से उरिन नहीं हो पाओगे।
ReplyDeleteब्याज चुकाना है सरल❗
उसकी कर लो आज पहल⁉️
जिस घर में हो पुत्री का जनम।
उसके सुधर जाते हैं करम।।
इसलिए
सबको समझने की आवश्यकता है
मातृऋण के ब्याज में न हो वृद्धि
पुत्री से आ जाती है समृद्धि
यद्यपि
आजकल
बहुत शोर है
हल्ला-गुल्ला और
भाषणबाजी का दौर है
परंतु
हमें
समझने की आवश्यकता नहीं है
और
न ही समझाने की
बल्कि
करने का समय है
मातृऋण के ब्याज से
उरिन होने का समय है
अन्यथा
फिर न समय है
और न ....🙏