Skip to main content

Poem on motherमां कंठ हम आवाज(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

सच ही तो कहती है स्नेह लेखनी
*मां कंठ हम आवाज*
मां किन शब्दों में करूं तेरा शुक्रिया
मेरी शब्दावली में ढूंढे भी नहीं मिलते अल्फ़ाज़
11 स्वर और 33 व्यंजन कम हैं जो बताऊं मां तेरी महानता का मैं राज

मातृ ऋण से कभी उऋण नहीं हो सकते हम
मां ममता का सबसे मधुर सा साज 

अपने वजूद की स्याही से हमारे अस्तित्व को लिखने वाली
क्या लिखूं तेरे बारे में तूने तो मुझे ही लिखने का कर डाला है काज

सौ बात की एक बात है
 *मां कंठ हम आवाज*
फिर भी मां का हिवडा दुखाने से हम नहीं आते हैं बाज

मां हमारी खुशियों के लिए अपने दर्दों को बना कर रखती है राज
खामोशी की आवाज भी सुन लेती है मां,
मां से ही मिलते शिक्षा,संस्कार,रीति रिवाज
सच ही तो कहती है स्नेह लेखनी
*मां कंठ हम आवाज*


सपनों को हकीकत में 
बदल देती है मां
मां ही पंखों को देती परवाज़

मैने भगवान को तो नहीं देखा,
पर जब जब देखा अपनी मां को दिल से निकली यही आवाज
*मां ईश्वर का पर्याय है जग में*
मां है तो फिर नहीं गिरती कोई गाज

लाखों की कमी पूरी कर देती है एक मां,
पर एक मां की कमी लाख भी पूरी नहीं कर पाते,
मां से सुंदर हमारा कल और आज

सच ही तो कहती है स्नेह लेखनी
*मां कंठ हम आवाज*

Comments

  1. मातृऋण से उरिन नहीं हो पाओगे।
    ब्याज चुकाना है सरल❗
    उसकी कर लो आज पहल⁉️
    जिस घर में हो पुत्री का जनम।
    उसके सुधर जाते हैं करम।।
    इसलिए
    सबको समझने की आवश्यकता है
    मातृऋण के ब्याज में न हो वृद्धि
    पुत्री से आ जाती है समृद्धि
    यद्यपि
    आजकल
    बहुत शोर है
    हल्ला-गुल्ला और
    भाषणबाजी का दौर है
    परंतु
    हमें
    समझने की आवश्यकता नहीं है
    और
    न ही समझाने की
    बल्कि
    करने का समय है
    मातृऋण के ब्याज से
    उरिन होने का समय है
    अन्यथा
    फिर न समय है
    और न ....🙏

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

वही मित्र है((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कह सकें हम जिनसे बातें दिल की, वही मित्र है। जो हमारे गुण और अवगुण दोनों से ही परिचित होते हैं, वही मित्र हैं। जहां औपचारिकता की कोई जरूरत नहीं होती,वहां मित्र हैं।। जाति, धर्म, रंगभेद, प्रांत, शहर,देश,आयु,हर सरहद से जो पार खड़े हैं वही मित्र हैं।। *कुछ कर दरगुजर कुछ कर दरकिनार* यही होता है सच्ची मित्रता का आधार।। मान है मित्रता,और है मनुहार। स्नेह है मित्रता,और है सच्चा दुलार। नाता नहीं बेशक ये खून का, पर है मित्रता अपनेपन का सार।। छोटी छोटी बातों का मित्र कभी बुरा नहीं मानते। क्योंकि कैसा है मित्र उनका, ये बखूबी हैं जानते।। मित्रता जरूरी नहीं एक जैसे व्यक्तित्व के लोगों में ही हो, कान्हा और सुदामा की मित्रता इसका सटीक उदाहरण है। राम और सुग्रीव की मित्रता भी विचारणीय है।। हर भाव जिससे हम साझा कर सकें और मन यह ना सोचें कि यह बताने से मित्र क्या सोचेगा?? वही मित्र है।। बाज़ औकात, मित्र हमारे भविष्य के बारे में भी हम से बेहतर जान लेते हैं। सबसे पहली मित्र,सबसे प्यारी मित्र मां होती है,किसी भी सच्चे और गहरे नाते की पहली शर्त मित्र होना है।। मित्र मजाक ज़रूर करते हैं,परंतु कटाक...

बुआ भतीजी

सकल पदार्थ हैं जग माहि, करमहीन नर पावत माहि।।,(thought by Sneh premchand)

सकल पदारथ हैं जग मांहि,कर्महीन नर पावत नाहि।। स--ब कुछ है इस जग में,कर्मों के चश्मे से कर लो दीदार। क--ल कभी नही आता जीवन में, आज अभी से कर्म करना करो स्वीकार। ल--गता सबको अच्छा इस जग में करना आराम है। प--र क्या मिलता है कर्महीनता से,अकर्मण्यता एक झूठा विश्राम है। दा--ता देना हमको ऐसी शक्ति, र--म जाए कर्म नस नस मे हमारी,हों हमको हिम्मत के दीदार। थ-कें न कभी,रुके न कभी,हो दाता के शुक्रगुजार। हैं--बुलंद हौंसले,फिर क्या डरना किसी भी आंधी से, ज--नम नही होता ज़िन्दगी में बार बार। ग--रिमा बनी रहती है कर्मठ लोगों की, मा--नासिक बल कर देता है उद्धार। हि--माल्य सी ताकत होती है कर्मठ लोगों में, क--भी हार के नहीं होते हैं दीदार। र--ब भी देता है साथ सदा उन लोगों का, म--रुधर में शीतल जल की आ जाती है फुहार। ही--न भावना नही रहती कर्मठ लोगों में, न--हीं असफलता के उन्हें होते दीदार। न--र,नारी लगते हैं सुंदर श्रम की चादर ओढ़े, र--हमत खुदा की सदैव उनको मिलती है उनको उपहार। पा--लेता है मंज़िल कर्म का राही, व--श में हो जाता है उसके संसार। त--प,तप सोना बनता है ज्यूँ कुंदन, ना--द कर्म के से गुंजित होता है मधुर व...