गुजरे वक्त से जब वक्त की
धूल हटाती हूं
तेरा अक्स आज भी
दमकता हुआ सा पाती हूं
कभी स्टोर के दरवाजे के पीछे
हाथ में गिलासी लिए दूध का इंतजार करते हुए पाती हूं
कभी मां का थामे हुए दामन
उसके अंक में सिमटा हुआ तुझे पाती हूं
सबसे छोटी थी क्रम में,
पर कर्मों में सबसे बड़ा ही पाती हूं
उपदेशन कहती थी मैं तुझ को,
मधुर वाणी में जैसे सबको समझाते हुए सा पाती हूं
कभी मॉडल स्कूल नीली स्कर्ट और सफेद शर्ट में जाते हुए पाती हूं
दो चोटी वाली सहेली शालिनी की बातें सुनाती हुए पाती हूं
कभी सफेद कोट और satetho स्कोप लिए हाथों में
कितने आत्म विश्वाश से दमकता हुआ चेहरा आंखों के सामने पाती हूं
कभी UPSC की तैयारी करते,
और IFS में चयनित हुए सबका गौरव बढ़ाने वाली को देख गौरवांवित हो जाती हूं
कभी दुल्हन बनी देख तुझे
भीतर से खुश हो जाती हूं
प्रेम न जाने जाति मजहब
उच्चारण नहीं आचरण में
तुझे लाते हुए पाती हूं
कभी तुलसी कूटते,कभी व्रत का खाना बनाते हुए देख हैरान सी हो जाती हूं
कभी देश में कभी परदेश में
जाने कितनी ही बार क्या क्या पैक करते हुए देख चौंक सी जाती हूं
दो बार बहा वात्सल्य का सागर तुझ में,तुझ सी मां कहीं नहीं पाती हूं
तूं कितना अच्छे से समझाती थी हर बात बच्चों को,
सोच सोच सिहर जाती हूं
मित्र,बहन,बेटी,पत्नी,मां,बहु
एक बेस्ट डिप्लोमेट हर किरदार को कितना बखूबी निभाया तूने, हर मोड़ पर प्रेरित हो जाती हूं
भगति की तूने पूरे भगति भाव से,मैं सोच सोच आह्लादित हो जाती हूं
मात पिता की सबसे प्यारी लाडो तुझे पूर्ण नहीं संपूर्ण सा पाती हूं
एक डिप्लोमेट की तरह निकल गई हौले से जिंदगी के रंगमंच से,मैं यादों के तिनके समेटे जाती हूं
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