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मैं जब मैं ना रहे विलय हो जाए हम में वही प्रेम कहलाता है(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

मैं जब मैं ना रहे,विलय हो जाए हम में,वही प्रेम कहलाता है

प्रेम हो जाता है जिस इंसा को,
उसकी नजर नहीं,नजरिया बदल जाता है

आँखें और चेहरा पढ़ना आ जाए तो फिर प्रेम सफल हो जाता है
जिसने पढ़ ली पाती प्रेम की,
फिर और क्या पढ़ने को रह जाता है??????

मन के कोरे कागज पर फिर कोई सदा के लिए चिन्हित हो जाता है
चित,चितवन,चेष्टा,चेतन,अचेतन में स्थाई रूप से बस जाता है

मैं जब मैं ना रहे विलय हो जाए हम में,वही प्रेम कहलाता है

जब धड़कन धड़कन संग बतियाती है
फिर हर शब्दावली अर्थ हीन हो जाती है
बिन लब खोले हर अहसास समझ में आता है
फिर मौन मुखर हो जाता है
ये दिल का दिल से गहरा नाता है
खून का नहीं यह तो नाता है स्नेह समर्पण,विश्वाश,अपनत्व का,
मेरी छोटी सी समझ को इतना ही समझ में आता है
हर जख्म का मरहम प्रेम है
प्रेम से तो जग सुंदर हो जाता है

कुछ बंधन भी मीठे होते हैं यह बंधन उन बंधनों में शीर्ष पर आता है
जब भी दर्पण में अक्स देखती है राधा
अक्स उसे नजर श्याम का आता है

यही कारण है युगों युगों के बाद भी
नाम राधा का कृष्ण से पहले आता है

मैं जब मैं ना रहे विलय हो जाए हम में,पौधा प्रेम का बढ़ता जाता है

प्रेम की सौंधी सौंधी महक से हृदय सुवासित हो जाता है
जिसने पढ़ ली पाती प्रेम की
फिर और क्या पढ़ने को रह जाता है???????

*सागर से भी गहरा है प्रेम*
*गगन से भी ऊंचा है प्रेम*
*पर्वत सा अडिग है प्रेम*
*पवन सा शीतल है प्रेम*
*दिनकर सा दम दम दमकता है प्रेम*
*इंदु सा मोहक होता है प्रेम*

११ स्वर और३३ व्यंजनों के बस की बात नहीं जो बता पाएं कैसा होता है प्रेम
*शब्द नहीं भाव है प्रेम*
*अभिव्यक्ति नहीं अहसास है प्रेम*
*प्रेम से सुंदर हो जाती है रूह और चित पावन हो जाता है*

जिसने पढ़ ली पाती प्रेम की
फिर और क्या पढ़ने को रह जाता है????

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