शिष्य कुंदन बन जाता है
चित की बंजर भूमि को
गुरु उपजाऊ बनाता है
गुरु तो वह पारस है
जो पत्थर को सोना बनाता है
गुरु ही है वह पथप्रदर्शक जो
फर्श से अर्श की ओर ले जाता है
*गुरु हो जब राम कृष्ण परमहंस सा
शिष्य विवेकानंद बन जाता है*
दिल में स्नेह, दिमाग में ज्ञान, जेहन में करुणा सिंधु गुरु के लहराता है
अपने से भी बेहतर देख शिष्य को
गुरु का सीना चौड़ा हो जाता है
गुरु हो गर माधव सा तो पार्थ को
*गीता ज्ञान* समझ में आता है
मानों चाहे या ना मानों कर्म इंसा को सुंदर बनाता है
चित की बंजर भूमि को गुरु ही उपजाऊ बनाता है
सुरक्षा,संरक्षा,संवृद्धि का विशाल वृक्ष है गुरु,जिसकी छाया तले
शिष्य पल्लवित पुष्पित हो जाता है
गुरु गरिमा है,गुरु महिमा है
गुरु ही हमें शून्य से शिखर तक ले जाता है
*गुरु हो गर द्रोण सा,शिष्य फिर अर्जुन बन जाता है*
चित की बंजर भूमि को गुरु उपजाऊ बनाता है
गुरु हो गर सोने सा तो शिष्य कुंदन बन जाता है
गुरु तो वह जौहरी है जो तराश देता है शिष्य को हीरा सा,
यह शिष्य पर निर्भर है क्या उसे हीरा बनना आता है
गुरु देता है शिक्षा हर शिष्य को पर
कोई प्रथम कोई अंत में आता है
**गुरु हो गर चाणक्य सा तो शिष्य चंद्रगुप्त बन जाता है**
गुरु ही तो है जो शिक्षा भाल पर तिलक संस्कारों का लगाता है
कथनी करनी हो एक समान हमारी,उच्चारण नहीं गुरु आचरण में विश्वाश रखना सिखाता है
गुरु की ब्रह्मा,गुरु ही विष्णु
गुरु जीवन धुरि कहलाता है
हर सफर मंजिल की ओर जाए ज़रूरी तो नहीं,पर मंजिल की ओर जाएगा कोई ना कोई सफर ही,गुरु कर्म की महता सही मायनों में शिष्य को समझाता है
गुरु हो जब वशिष्ठ सा शिष्य राम से मर्यादा पुरूषोतम राम बन जाता है
गुरु हो गर सोने सा
शिष्य कुंदन बन जाता है
चित की बंजर भूमि को गुरु उपजाऊ बनाता है
सफलता का कोई शॉर्ट कट नहीं होता,
सही दिशा में सही समय पर सार्थक प्रयास करने से सफर सुहाना हो जाता है
हर संशय को मिटा देता है गुरु चित से,फिर सब समझ में आता है
हर दुविधा बन जाती है सुविधा,
सफर जीवन का सरल बन जाता है
आहत चित को गुरु देता है राहत
प्रेरित मन सुपरिणामों का द्वार खटखटाता है
जीवन के हर चक्रव्यूह से गुरु ज्ञान बाहर निकाल कर लाता है
जीवन पथ ना बने अग्निपथ,
गुरु इसे सहज पथ बनाता है
मलिन मनों से धुंध कुहासे
गुरु ज्ञान ही हटाता है
गुरु हो गर अरस्तू सा तो शिष्य विश्व विजेता सिकंदर बन जाता है
चित की बंजर भूमि को गुरु ही उपजाऊ बनाता है
गुरु हो गर सोने सा,
शिष्य कुंदन बन जाता है
सबके भीतर छिपा है एक हनुमान
हमारी आंतरिक शक्तियों से हमारा परिचय गुरु ही करवाता है
असीमित संभावनाओं के अथाह सागर में जब चलती है मधानी प्रयासों की,सुपरिणाम बाहर निकल कर आता है
*चाहें तो क्या नहीं कर सकते हम*
गुरु यही अहसास पग पग पर करवाता है
जोश,जज्बा और जुनून तीनों की घुट्टी गुरु पिलाता है
अनुशासन,मर्यादा,प्रतिबद्धता,
मेहनत जाने कितने ही सद्गुण चित में रोपित किए जाता है
स्नेह,समर्पण,निष्ठा, आदर हो गर चित में गुरु के लिए
शिष्य गुरु से भी आगे बढ़ जाता है
*सपने वह होते हैं जो हमें सोने नहीं देते* ऐसे सपने भी देखना गुरु ही हमें सिखाता है
हम जुगनू दिनकर है गुरु,मेरी सोच को तो इतना ही समझ में आता है
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