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संजीवनी सी मुस्कान संजीव जी आपकी(विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*संजीवनी सी मुस्कान संजीव जी 
आपकी*
कुदरत का आपको अनमोल उपहार
*सर्विस विद स्माइल*को सार्थक करती,
सकारात्मकता का करती संचार

*कर्म ही असली परिचय पत्र होते हैं व्यक्ति का*
वरना एक ही नाम के व्यक्ति होते हैं हजार

किसी का काम अच्छा होता है
किसी की वाणी अच्छी होती है
किसी का अच्छा होता है व्यवहार
तीनों हीं अच्छे नहीं 
अति अच्छे हों जिनके,
संजीव जी का नाम हैं उनमें शुमार

*निर्जीव को जो सजीव बना दे*
*निराशा में आशा दीप जला दे*
ऐसा विहंगम व्यक्तित्व आपका
*कुशल नेतृत्व,उत्तम संस्कार*
और अधिक अब क्या कहना??
*सादा जीवन उच्च विचार*

अच्छे पुत्र,भाई,पिता,पिता,हमसफर,
कार्यकर्ता का निभाया सदा
 बखूबी किरदार
*सहयोग ही सच्चा कर्मयोग है*
जानते हो जिम्मेदारी संग ही 
मिलते हैं अधिकार

*हंसमुख,हेल्पफुल, ज्ञानी,मिलनसार*
चार स्तंभ ये आपके व्यक्तित्व के
न कोई कपट,क्लेश ना द्वंद न अहंकार

और परिचय क्या दूं आपका????
फर्श से अर्श तक के सफर में
आ गया समझ जीवन का सार

आपका अनुभव तो बोलता ही है
और बोलता है आपका व्यवहार
मीठी बोली और मधुर मुस्कान ही
रहे सदा आपका सच्चा अलंकार

अपनी बात को तर्क संग कहना
सबको नहीं इस जग में आता
पर आपको आता है बखूबी
रहा निगम से आपका गहरा नाता
कोई बाधा ना बनी बाधक
चुनौतियों को किया हंसते हंसते स्वीकार

*रिटायरमेंट किसी भी रास्ते का अंत नहीं है बल्कि यह तो खुले हाई वे का आरंभ है* इस अहसास से जिंदगी आपकी हो खुशगवार
आगामी पारी के लिए हैं हमारी शुभकामनाएं,कर लेना इन्हें आप स्वीकार

माना जीवन का *स्वर्ण काल*हम
कार्यक्षेत्र में बिताते हैं
पर शेष जीवन भी है *हीरक काल"
यह क्यों भूले जाते हैं????
शेष जीवन भी अति विशेष हो आपका,यह दिल से हम दोहराते हैं
*आवागमन* तो है *दस्तूर ए जहान*
लोग कार्यक्षेत्र और जगत में आते जाते हैं

पर जिंदगी सार्थक इस बात से होती है 
हम कितने दिलों में जगह बनाते हैं
आपने जीता है दिलों को,संबंध कमाए हैं,आंकड़े यही समझाते हैं

काम तो सब करते ही हैं पर काम को जोश,जज्बे और जुनून से आप सरीखे व्यक्तित्व कर कीर्तिमान बनाते हैं
यूं हीं तो नहीं एल आई सी के इतिहास में नाम उनके स्वर्णिम अक्षरों में लिखे जाते हैं
एक लंबी सफल सार्थक पारी खेली आपने,यादों के कारवां यही बताते हैं
*अनुकरणीय आपकी कार्य शैली
अनुकरणीय आपका उम्दा व्यवहार*

*विकास अधिकारी हो गर सोने सा,
अभिकर्ता कुंदन सा बन जाता है*
हो अभिकर्ता को गर कोई समस्या
विकास अधिकारी तत्क्षण समाधान बन जाता है
गुरु हो गर राम कृष्ण परमहंस सा
शिष्य विवेकानंद बन जाता है
आप भी बने हो गुरु जाने कितनों के ही,मेरी समझ को तो यही समझ में आता है

संजीवनी सी मुस्कान संजीव जी आपकी,कुदरत का आपको अनमोल उपहार
सीखना है तो कोई सीखे आपसे
कैसे लेते हैं किसी के दर्द उधार
कुछ किया दरगुज़र,कुछ किया दरकिनार
इसी मूल मंत्र को जीवन में सहज भाव से कर लिया स्वीकार

शिकन ना देखी  कभी भाल पर आपके,
नजर नहीं नजरिए से हालात बदल जाते हैं
एक लंबी सफल पारी खेली आपने
किस्से कहानियां यही बताते हैं
आपसे विकास अधिकारी हो तो
ग्राहक निगम में समाधान हेतु आते हैं और संतुष्टि सहित जाते हैं
उच्चारण और आचरण दोनों को आप सरीखे बखूबी निभाते हैं

हौले हौले शनै शनै दिन ये एक दिन आ ही जाता है
हो कार्यक्षेत्र से सेवा निवृत व्यक्ति घर को आता है
जाने कितने ही अनुभवों का टीका जिंदगी भाल पर लगाता है
अब ना कोई समय का बंधन होगा
न कोई फील्ड की भागदौड़ होगी
न होगी टारगेट पूरा करने की जद्दोजहद,बिन बंदिशों के जिंदगी  खुले गगन में उड़ती पतंग सी होगी

अब अपने हर शौक को पूरे करते जाना
हर लम्हे का खुल कर लुत्फ उठाना
आपके अच्छे स्वास्थ्य और सुखद जीवन की कामना कर रहा पूरा शाखा हिसार परिवार
सुख समृद्धि और शांति दे दस्तक अब आपके द्वार
कभी बुला लेना चाय पर हम सबको,
आ जाएंगे सपरिवार

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