*चित की बंजर भूमि को गुरु ही उपजाऊ बनाता है*
*गुरु हो गर सोने सा तो शिष्य कुंदन बन जाता है*
*हमारे कैलिबर को पहचान गुरु हमें फर्श से अर्श तक पहुंचाता है*
टीचर का काम मात्र टीच करना नहीं है बल्कि एक ऐसा जज्बा पैदा करना है जो हर मुश्किल काम को भी शिष्य हंसते हंसते कर दे
गुरु ही हमारी तार्किक शक्ति और क्षमताओं का संवर्धन करवाता है
*सही मायने में वही गुरु है जो हमारे पैशन को प्रोफेशन बनाता है*
*गुरु ही तो है जो हमारे भीतर छिपे हनुमान को पहचान हमें हमारी शक्तियों से अवगत करवाता है*
*गुरु तो वह दिनकर है जो हर
हर तमस उजियारा लाता है*
फूलों की सेज नहीं है जिंदगी
संघर्षों और चुनौतियों से भी हमारा चोली दामन का नाता है
संघर्षों में बिखरे नहीं निखरे हम,
यह गुरु ही हमें सिखाता है
असफलता अंत नहीं जीवन का,
सफलता का रास्ता यहीं से हो कर जाता है
धीरज रखें हिम्मत ना हारें,
आज नहीं तो कल कोई ना कोई हल मिल जाता है
ऐसा सबक इस जीवन में सच्चा गुरु ही हमें सिखाता है
*गुरु हो गर वशिष्ठ सा शिष्य राम से मर्यादा पुरूषोतम राम बन जाता है*
कोई विकार जन्म ना ले चित में,
गुरु सद्गुणों से हमारा परिचय करवाता है
काम,क्रोध, लोभ,मद,ईर्ष्या,अहंकार से हम दूर रहें हम,
इनके दुष्परिणामों से गुरु अवगत करवाता है
प्रेम,स्नेह,करुणा,विनम्रता ही हैं सच्चे गहने,
इनसे ही व्यक्तित्व गुरु हमारा सजाता है
दुर्योधन नहीं भरत सा बनना है भाई
इतिहास के उदाहरणों से हमें पग पग पर समझाता है
रावण नहीं, बनना है राम हमें
ऐसे संस्कारों की चिंगारी सुलगाता है
जीवन के हर चक्रव्यूह से बाहर निकलने का भी रास्ता दिखाता है
गुरु हर लेता है चित चिंता और चिंतन करना सिखाता है
संकल्प को सिद्धि से मिलवाने में गुरु अपना फर्ज निभाता है
*गुरु हो गर चाणक्य सा शिष्य चंद्रगुप्त बन जाता है*
गुरु ही तो है जो हमें हमारी खूबियों और खामियों दोनों से अवगत करवाता है
दिशा प्रदान करता है गुरु,
व्यक्तित्व को सही शेप देने में अपना दायित्व निभाता है
दृष्टि नहीं दृष्टिकोण देता है गुरु
शिष्य को अपने से आगे देख दिल से हर्षित हो जाता है
कांस्टेंट हैमरिंग करता है हमारी,
सकारात्मक परिणामों से भेंट कराता है
कर्म की क्या महता होती है जीवन में,हमें कर्मठ बनना सिखाता है
हार जीत दोनों ही हिस्सा हैं जीवन के,सुख दुख दोनों में सहज रहना गुरु सिखाता है
जीवन है चलने का नाम
गुरु टेढ़ी मेढ़ी राहों पर भी चलना सिखाता है
बारह मास नहीं रहता सावन,
कभी पतझड़ कभी शिशिर और कभी बसंत भी आता है
परिवर्तन है अवश्यंभावी गुरु हमें बताता है
गुरु निज प्रयासों से शिष्य को आत्मविश्वास की सीढ़ी चढ़ना सिखाता है
*गुरु हो गर माधव सा तो शिष्य पार्थ को गीता ज्ञान हो जाता है*
*कर्तव्य कर्म* हैं जिम्मेदारी हमारी,
फिर अधिकारों का नंबर आता है
लक्ष्य के लिए प्रतिबद्ध हों हम सदा,
यह बीज चित में गुरु ही अंकुरित,पल्लवित,पोषित किए जाता है
जो भी सिखाता है हमें जीवन में
वह "गुरु* हमारा बन जाता है
छोटे भी सिखा सकते हैं बड़ों को
मुझे तो इतना समझ में आता है
सीखने की कोई उम्र, जाति,मजहब नहीं होती,गुरु ज्ञान से मिट जाता है तिमिर और उजियारा आता है
हर दुविधा को गुरु बना देता है सुविधा
आहत मन की गुरु राहत बन जाता है
सौ बात की एक बात है गुरु जीने की राह सिखाता है
मंजिल की ओर जाने वाले सफर की गुरु ही राह दिखाता है
अक्षरज्ञान देना ही मात्र काम नहीं गुरु का,
गुरु तो व्यवहारिक,बौद्धिक,सामाजिक ज्ञान की अलख जलाता है
नजर नहीं नजरिया दे देता है गुरु हमको, फिर जग को हमे अपनी ही सोच से देखना आ जाता है
गुरु करता है ग्रूमिंग हमारी,नित नित सुधार और निखार ले आता है
अक्षरज्ञान तो गूगल बाबा पर ही बहुत है गुरु उच्चारण नहीं आचरण में विश्वाश रखना सिखाता है
अथाह असीमित संभावनाओं में से कैसे बेहतर से बेहतरीन कर सकते हैं हम,यह सोच गुरु ही शिष्य चित में विकसित किए जाता है
कैसे करें चयन सही हम अनेक विकल्पों में से,गुरु मार्ग दर्शक बन जाता है
एक स्पार्क पैदा कर देता है चित में सच्चा गुरु,
फिर कर्म बोझ नहीं आनंद बन जाता है
हमारी रचनात्मकता को गुरु उच्चतम शिखर तक ले जाता है
सच में गुरु ही तो है जो हमसे हमारा ही परिचय करवाता है
सपने वे होते हैं जो हमें सोने नहीं देते
गुरु बड़े बड़े सपने देखना सिखाता है
शिक्षा ही नहीं गुरु तो संस्कार चित में पोषित किए जाता है
प्रथम गुरु के रूप में तो निश्चित ही मां का स्थान सबसे ऊपर आता है
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