*माधव सा हो रंगरेज अगर तो
मन राधा राधा हो जाता है*
*प्रेम की पराकाष्ठा है यह नाता
जो राधा नाम कृष्ण से पहले आता है*
*श्याम रंग में ऐसी रंगी राधा
फिर कोई रंग दूजा नहीं चढ़ पाता है*
*वृंदावन की कुंज गलियों में
जैसे आज भी कोई रास रचाता है*
*निधि वन की लिपटी लताओं में
अक्स राधा का ही तो नजर आता है*
नाम भले ही न मिल पाया हो उस नाते को,पर राधा राधा कहने से
मन कृष्ण कृष्ण हो जाता है
झांकोगे जब अंतर्मन के गलियारों में,हर धुंधला मंजर स्पष्ट हो जाता है
प्रेम का अर्थ नहीं दैहिक प्राप्ति से
प्रेम में तो मन मन से मिल जाता है
दर्पण देखती है जब राधा
अक्स श्याम का नजर उसे आता है
यही होता है सच्चा प्रेम
तन दो पर मन एक हो जाता है
प्रेम का अर्थ किसी नाते में बांध
प्राप्ति नहीं है
प्रेम में तो पल पल अहसास गहराता है
प्रेम का रिश्ता दिल है दिमाग से नहीं
प्रेम को तर्क करना नहीं आता है
प्रेम में अहम का विलय वयम में हो जाता है
समर्पण,त्याग,स्नेह,विश्वास हैं मित्र प्रेम के,प्रेम सदा इन चारों से घिरा हुआ खुद को पाता है
प्रेम कुछ सिद्ध करना नहीं चाहता
प्रेम में तो सब स्वयं सिद्ध हो जाता है
प्रेम शब्द है भले ही ढाई अक्षर का
पर करो व्याख्या जब प्रेम की
सागर भी छोटा पड जाता है
अपनी अपनी समझ और अनुभव अनुसार हर कोई प्रेम का अर्थ लगाता है
प्रेम बांटने से और बढ़ता है
जैसे ठहरे पानी में कंकरिया मारने से
गोलाकार पानी का आकार बढ़ता जाता है
माधव रंग में ऐसी रंग जाती है राधा
उसे कण कण में कृष्ण ही नजर आता है
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