Skip to main content

समझ लेना विमेंस डे आ गया(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))


*जब प्रेम से पहले सम्मान आ जाए
समझ लेना विमेंस डे आ गया*

*जब नारी अस्मिता पर कोई आंच ना आए समझ लेना विमेंस डे आ गया*

*जब अंतरजातीय विवाह पर अंकुश ना लगाया जाएगा, जाति नहीं व्यक्ति विशेष को देख लड़कियों को इसकी अनुमति होगी समझ लेना विमेंस डे आ गया*

जब नारी को निर्णय लेने का अधिकार होगा उसकी स्वतंत्र सोच होगी और दुनिया को देखने का उसका अपना ही नजरिया होगा
अपने पैशन को प्रोफेशन बनाने में कोई भी बाधा बाधक नहीं बनेगी
समझ लेना विमेंस डे आ गया

नारी समंदर नहीं मीठी बहती नदी है खारापन उसका स्वभाव नहीं मिठास है उसका स्वभाव,गहराई है उसमें,सबको बांध कर रखने की क्षमता है उसके पास,जिस दिन यह समझ आ गया समझ लेना विमेंस डे आ गया

*नारी को महान भले ही ना समझो पर जिस दिन इंसान समझ लिया समझ लेना विमेंस डे आ गया*

*जब सास में मां और ननद में बहन दिखाई देने लगे समझ लेना विमेंस डे आ गया*

*जब नारी तन के भूगोल को छोड़ उसके मनोविज्ञान को पढ़ना आ जाए,समझ लेना विमेंस डे आ गया*

*जब बेटे बेटी को एक ही नजरिए से देखा जाने लगे
जब बेटी बोझ नहीं शक्ति लगने लगे
जब कुआं पूजन बेटी का भी सहज भाव से होने लगे समझ लेना विमेंस डे आ गया*

*जब बेटी को बेटे समान ही सब साधन और संसाधन मुहैया करवाए जाने लगे
समझ लेना विमेंस डे आ गया*

*जब समाज में हर बहन बेटी अपने को महफूज समझने लगे
जब हर बच्ची को शिक्षा का अधिकार मिले समझ लेना विमेंस डे आ गया*

जब कोई भी रावण किसी भी सीता का अपहरण ना कर पाए समझ लेना विमेंस डे आ गया

जब कोई भी दुशासन किसी भी पांचाली का चीर हरण ना कर पाए समझ लेना विमेंस डे आ गया

जब मलिन मनों से धुंध कुहासे हट जाएं,पराई नारी में मां बहन बेटी के दीदार होने लगें समझ लेना विमेंस डे आ गया

जब अपने कार्यक्षेत्र,बाजार,सफर में नारी बिन किसी डर के जा आ सके समझ लेना विमेंस डे आ गया

*जब नजर नहीं महिलाओं के लिए नजरिया बदलने लगे
जब हर बहन बेटी को बेटों के समान ही अधिकार मिलने लगें
समझ लेना विमेंस डे आ गया*

*जब बेटी को शादी के बाद भी अपने पीहर में एक कोना अपना दिखाई देने लगे समझ लेना विमेंस डे आ गया*

पर आधुनिकता के नाम पर मर्यादा की सीमा ना लांघी जाएं
हाथों में मदिरा के प्याले घर की बाला ना छलकाएं
जब यह पता हो कहां रुकना है कहां तक जाना है
अपनी लक्ष्मण रेखा का बोध हर सीता को हो समझ लेना विमेंस डे आ गया


अपने जीवन में सबसे दमदार नारी के रूप में मुझे तो मां नजर आती है
हर समस्या का समाधान खोज लेती थी मां,कभी भूख लगी तो मां रोटी बन जाती है
मां ने कब क्या कैसे कितना किया
यह तो एक लंबी कहानी है
पर जिंदगी की कहानी में मां रानी नहीं महारानी है
संघर्षों का डट कर किया मां ने सामना,हर धूप में मां छाता बन जाती है

मा प्रेरणापुंज रही आजीवन,
मां की कहानी हर मोड़ पर कुछ ना कुछ सिखाती है
कर्म बदल सकता है भाग्य
मां हर मोड़ पर यही सिखाती है



Comments

Popular posts from this blog

वही मित्र है((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कह सकें हम जिनसे बातें दिल की, वही मित्र है। जो हमारे गुण और अवगुण दोनों से ही परिचित होते हैं, वही मित्र हैं। जहां औपचारिकता की कोई जरूरत नहीं होती,वहां मित्र हैं।। जाति, धर्म, रंगभेद, प्रांत, शहर,देश,आयु,हर सरहद से जो पार खड़े हैं वही मित्र हैं।। *कुछ कर दरगुजर कुछ कर दरकिनार* यही होता है सच्ची मित्रता का आधार।। मान है मित्रता,और है मनुहार। स्नेह है मित्रता,और है सच्चा दुलार। नाता नहीं बेशक ये खून का, पर है मित्रता अपनेपन का सार।। छोटी छोटी बातों का मित्र कभी बुरा नहीं मानते। क्योंकि कैसा है मित्र उनका, ये बखूबी हैं जानते।। मित्रता जरूरी नहीं एक जैसे व्यक्तित्व के लोगों में ही हो, कान्हा और सुदामा की मित्रता इसका सटीक उदाहरण है। राम और सुग्रीव की मित्रता भी विचारणीय है।। हर भाव जिससे हम साझा कर सकें और मन यह ना सोचें कि यह बताने से मित्र क्या सोचेगा?? वही मित्र है।। बाज़ औकात, मित्र हमारे भविष्य के बारे में भी हम से बेहतर जान लेते हैं। सबसे पहली मित्र,सबसे प्यारी मित्र मां होती है,किसी भी सच्चे और गहरे नाते की पहली शर्त मित्र होना है।। मित्र मजाक ज़रूर करते हैं,परंतु कटाक...

बुआ भतीजी

सकल पदार्थ हैं जग माहि, करमहीन नर पावत माहि।।,(thought by Sneh premchand)

सकल पदारथ हैं जग मांहि,कर्महीन नर पावत नाहि।। स--ब कुछ है इस जग में,कर्मों के चश्मे से कर लो दीदार। क--ल कभी नही आता जीवन में, आज अभी से कर्म करना करो स्वीकार। ल--गता सबको अच्छा इस जग में करना आराम है। प--र क्या मिलता है कर्महीनता से,अकर्मण्यता एक झूठा विश्राम है। दा--ता देना हमको ऐसी शक्ति, र--म जाए कर्म नस नस मे हमारी,हों हमको हिम्मत के दीदार। थ-कें न कभी,रुके न कभी,हो दाता के शुक्रगुजार। हैं--बुलंद हौंसले,फिर क्या डरना किसी भी आंधी से, ज--नम नही होता ज़िन्दगी में बार बार। ग--रिमा बनी रहती है कर्मठ लोगों की, मा--नासिक बल कर देता है उद्धार। हि--माल्य सी ताकत होती है कर्मठ लोगों में, क--भी हार के नहीं होते हैं दीदार। र--ब भी देता है साथ सदा उन लोगों का, म--रुधर में शीतल जल की आ जाती है फुहार। ही--न भावना नही रहती कर्मठ लोगों में, न--हीं असफलता के उन्हें होते दीदार। न--र,नारी लगते हैं सुंदर श्रम की चादर ओढ़े, र--हमत खुदा की सदैव उनको मिलती है उनको उपहार। पा--लेता है मंज़िल कर्म का राही, व--श में हो जाता है उसके संसार। त--प,तप सोना बनता है ज्यूँ कुंदन, ना--द कर्म के से गुंजित होता है मधुर व...