अंदाज ए गुफ्तगू उनका हमें तो समझ नहीं आया। कभी बन गए बिल्कुल ही अपने, कभी वजूद ही लगने लगा पराया।। हम तो खड़े रहे उसी मोड़ पर, बेशक ही राह में कोई भी मोड़ हो आया।। आए जब भी वे पहलू में हमारे, खुद को हमने,मोम सा ही पिंगलते पाया।। तुम हमे चाहो न चाहो, हमारी चाहत में तो इजाफा ही आया।। प्रेम को सदा प्राप्ति भी मयस्सर हो, ज़रूरी नहीं, सत्य ये समझ है आया।। प्रेम तवज्जौ भी नहीं मांगता, नहीं प्रेम से मधुर कोई भी साया।। स्नेह प्रेमचंद