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राधा ने जब देखा दर्पण(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

राधा ने जब देखा दर्पण अक्स कान्हा का नजर आया दो नहीं एक हैं दोनों मुझे तो इतना समझ में आया मुख से बोला राधे राधे मन कृष्ण कृष्ण हो आया मुरली की तान में राधा कृष्ण की धड़कन में राधा वृंदावन की गलियों में राधा प्रेम का इतना प्यारा स्वरूप हर निर्मल चित को भाया राधा से जब पूछा किसी ने कैसा है तुम्हारा लाना से नाता राधा ने जो दिया उत्तर,युगों युगों के बाद भी, वह हर चित जन जन को भाता कृष्णा हैकन्हा तो आवाज हूं मैं गीत है कन्हा तो साज हूं मैं रीत हैं कान्हा तो रिवाज हूं मैं भाव हैं कान्हा तो अल्फाज हूं मैं नयन हैं कान्हा तो नूर हूं में हाला हैं कान्हातो सरूर हूं में भाव हैं कान्हा तो अल्फाज हूं मैं कंठ हैं कान्हा तो आवाज हूं मैं अधर हैं कान्हा  तो मुरली की तान हूं मैं मांग हैं कान्हा  तो सिंदूर की आन हूं मैं मीत हैं कान्हा तो प्रीत हूं मैं संगीत हैं कान्हा तो गीत हूं मैं माखन हैं कान्हा तो मधानी हूं मैं राजा है कान्हा तो रानी हूं मैं ग्वाला हैं कान्हा तो गैया हूं मैं ममता हैं कान्हा तो मैया हूं मैं मंजिल हैं कान्हा तो राह हूं मैं कशिश हैं कान्हा तो चाह हूं में