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इख्तियार

हमारे ही 

काबिल ए बर्दाश्त thought by snehpremchand

कई बार अपनों के दिये हुए जख्म कतई काबिल ए बर्दाश्त नहीं होते,परन्तु हमे यह इल्म हो,हमारा हमारी सोच और कर्मों पर तो अख्तियार है दूसरों की पर नहीं।।                     स्नेहप्रेमचन्द