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सोचा ना था(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

सोचा ना था पल पल परछाई सी संग रहने वाली अचानक ही जिंदगी के रंगमंच से कभी वापस न लौटने के लिए चली जाएगी।। सोचा न था यूं अचानक ही पर्दा गिर जाएगा।। सोचा ना था यूं अपने कर्मों से भाग्य की रेखाओं को बदल कर फर्श से अर्श तक का सफर तय कर लोगी।। सोचा ना था घर में सबसे छोटी पर औरे में सबसे बड़ी होगी।। सोचा ना था इतने दौर ए आजमाइश से गुजरना होगा।। सोचा ना था उपलब्धियां भी बहुत होंगी और परीक्षाएं भी बहुत।। सोचा ना था यूं परदेस की धरा पर तूं सदा के लिए परदेसी हो जाएगी।। सोचा ना था तूं सच की डिप्लोमेट निकलेगी और यूं अचानक ही हौले से गायब हो जाएगी।।

जिंदगी की शाम